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* जिनसहननाम टीका - ८५ * टीका - पापात् = अपेतो रहितः स पापापेतः निष्पाप इत्यर्थः = जिनेश्वर पाप से अपेत, रहित हैं इसलिए वे पापापेत कहे जाते हैं अर्थात् जिनेश्वर निष्पाप
विपापात्मा = विपापः पापरहित: आत्मा यस्य स विपापात्मा = त्रिपापपाप-रहित आत्मा जिनका है ऐसे जिनदेव विपापात्मा हैं।
विपाप्मा = विगतं निमगार पाप्मा पापं योति निमा निष्पापः इत्यर्थ: - विगत - विनष्ट हो गया है, पाप्मा पाप जिनका अर्थात् पापरहित जो हो गये हैं ऐसे जिनेश्वर विपाप्मा हैं। पापों का क्षय करने वाले होने से आप विपाप्मा
वीतकल्मषः = वीत क्षपित कल्मषं पापकर्म येन स वीतकल्मषः - वीतंक्षय कर दिया है कल्मष का, पाप का जिन्होंने वे जिनप्रभु वीतकल्मष हैं। पातक रहित हैं। कर्म कलंक रहित होने से बीतकल्मष हैं।
निर्द्वन्द्वः = निर्गतं द्वंद्वं कलहो यस्य स निद्वंद्वः = कलह को द्वन्द्व कहते हैं। उससे रहित जिनराज निर्द्वन्द्र हैं। मानसिक विकल्प जाल के परिग्रह से रहित होने से भी आप निर्द्वन्द्व हैं।
निर्मदः = निर्गतो मदोऽहंकारोऽष्टप्रकारो-यस्मादिति निर्मद:- निकल गया है आठ प्रकार का मद-अहंकार गर्व जिनसे ऐसे जिनेश निर्मद हैं। ज्ञानगर्व, पूजा-आदर-सत्कार का गर्व, कुलगर्व - अपने पिता के वंश का गर्व, जातिगर्व - अपनी माता के वंश का गर्व, बलगर्व, ऋद्धिगर्व - सम्पत्ति का गर्व, तप का गर्व तथा शरीर सौन्दर्य का गर्व ऐसे आठ प्रकार के गर्व जिननाथ में नहीं रहते हैं अतः वे निर्मद हैं। .
शान्तः = 'शमुदमु उपशमे' शाम्यति स्म उपशमं गच्छति स्म शान्त:शम्, दम् धातु शान्त अर्थ में आती है और प्रभु ने रागादिक दोष को शान्त कर दिया, उपशम कर लिया, इसलिए उनका नाम शान्त यह सार्थक है।
निर्मोहः = निर्गतो मोहो अज्ञानं यस्मादिति निर्मोहः - नष्ट हो गये हैं मोह, अज्ञान जिनके ऐसे प्रभु निर्मोह हैं।