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* जिनसहस्रनाम टीका - ८७ * निष्कलंकः = निर्गतः कलंकोऽपवादो यस्य स निष्कलंकः = जिनसे कलक, अपवाद नष्ट हो गया है ऐसे वे प्रभु निष्कलङ्क हैं।
निरस्तैना = निरस्तं स्फेटितं एनः पापं येन स निरस्तैना - नष्ट किया है पाप अपने आत्मा से जिन्होंने ऐसे जिनराज निरस्तैना नाम से प्रसिद्ध हैं।
नि तागः = निरस्तं आगोऽपराधो येन स निर्दूतागः - उक्तमनेकार्थेआगः स्यादेनोवदधे गतौ = आग = अपराध जिन्होंने अपने आत्मा से दूर किया है ऐसे जिनप्रभु निर्धूताग - निरपराध हुए हैं। अनेकार्थ कोश में अगस् का अर्थ पाप, अपराध किया है।
निराम्रवः = निर्गतः आस्रवः अभिनवकर्मादानहेतुर्यस्य स निरामवः = प्रति समय नये-नये ज्ञानावरणादि कर्मों का ग्रहण करना आस्रव , वह मोह कर्म के नाश से बन्द हुआ है। अतः जिनपति निराम्रव नाम के धारक हैं। कर्मों के आसव से रहित होने से आप निराम्रव हैं।
विशालो विपुलज्योतिरतुलोऽचिन्त्यवैभवः । सुसंवृतः सुगुप्तात्मा सुबुध् सुनयतत्त्ववित् ।।८।।
अर्थ : विशाल, विपुलज्योति, अतुल, अचिन्त्यवैभव, सुसंवृत, सुगुप्तात्मा, सुबुध्, सुनय, तत्त्ववित् ये आठ नाम जिनेश्चर के हैं।
टीका - विशाल: = विशिष्टां शां शांततां लातीति विशालः - विशिष्ट शांति को भगवान स्वयं ग्रहण करते हैं तथा भक्तों को देते हैं वे विशाल नाम से युक्त हैं। अत्यन्त विशाल होने से भी विशाल हैं।
विपुलज्योतिः = विपुलं विस्तीर्ण लोकालोकव्यापकं ज्योति: केवलज्ञानं यस्य स विपुलज्योति: - विस्तीर्ण = विस्तरित लोकालोक व्यापक केवलज्ञानप्रकाश जिनको प्राप्त हुआ है वे जिन विपुलज्योति हैं।
अतुलः = तुल् उन्माने 'तुल चुरादेश्च इन्' । 'नामिः गुणः' तोलनं तुलातोलेरुच्च अट् प्र. ओकारस्य उकारः कारितस्याः कारितलोपः, स्वमते तुला या सम्मितेऽपि च इति ज्ञापकादेव तुला इति निपातः । न तुला तोलनं यस्य सोऽतुल: तोलयितुमशक्य इत्यर्थः - 'तुल्' धातु तौलने मापने अर्थ में है- आपको कोई