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जिनलहमनाम सीमा : ८. माप नहीं सकता-तौल नहीं सकता। आपके ज्ञान में सारे जगत् प्रतिबिम्बित होने से, आप सर्व जगद् व्यापी हैं अत: आपको मापना अशक्य है, किसी । की तुलना आपसे नहीं कर सकते अत: आप अतुल हैं।
अचिन्त्यवैभवः = अचिन्त्यं मनस: अगम्यं वैभवं विभुत्वं यस्येति स अचिन्त्यवैभवः - मन के द्वारा अगम्य है वैभव जिनका ऐसे प्रभु का 'अचिन्त्यवैभव' नाम है।
सुसंवृतः = सुष्टु अतिशयेन संवृणोत्ति स्म सुसंवृतः अतिशयवद्विशिष्टि संवर युक्त इत्यर्थः - प्रभु अतिशय वाले संवर से युक्त हैं। अर्थात् मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय इनसे कर्मागमन होता था परन्तु इनका प्रभु ने नाश किया है। अत: उनकी आत्मा में कर्मों का आना ही बंद हो गया जिससे उनको परमसंवर की प्राप्ति हुई है। अर्थात् आप नवीन कर्मों के आस्रव को रोककर पूर्ण संवरमय हो गये अतः सुसंवृत हैं।
सुगुप्तात्मा = सुष्टु अतिशयेन गुप्तः आस्रवविशेषाणामगम्यः आत्मा टंकोत्कीर्णः ज्ञायकैकस्वभाव आत्मा जीवो यस्य स सुगुप्तात्मा, तिसृभिर्गुप्तिभि; संवृतत्त्वात् - जिनदेव का आत्मा अतिशय गुप्तियुक्त है। उनकी मनोगुप्ति, कायगुप्ति तथा वचनगुप्ति वृद्धिंगत हुई है जिससे आस्रव विशेषों का वहाँ प्रवेश असम्भव है। तथा तीन गुप्तियों से संवृत होने से जिनदेव का आत्मा टांकी से उत्कीर्ण पाषाण के समान पूर्ण ज्ञायक स्वभाववान हुआ है। अतः सुगुप्तात्मा इस नाम को वे सार्थक कर रहे हैं। अथवा आपकी आत्मा अतिशय सुरक्षित है, तीन गुप्तियों से युक्त है अतः सुगुप्तात्मा हैं।
सुबुध् = सुष्ठु बोधयतीति सुबुध ज्ञातेत्यर्थ: भली प्रकार से प्रशस्त बोध कराते हैं इसलिए आप सुबुध हैं।
सुनयतत्त्ववित् : = सुष्ठु नयानां नैगम संग्रह व्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवं-भूतानां नयानां तत्त्वं रहस्यं मर्म वेत्तीति सुनयतत्त्ववित् - जिनदेव नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़, एवंभूतादि नयों का तत्त्व१. महापुराण में सुबुध के स्थान पर 'सुभुत' नाम भी है। आप सर्व पदार्थों को अच्छी तरह जानते
हैं अत: सुमुत् हैं!