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** जिनसहस्रनाम टीका- ७६ *
प्रशमात्मा = प्रशमः कामक्रोधाद्यभावः आत्मा स्वभावो यस्य स प्रशमात्मा = प्रशम - कामक्रोधादिकों के अभाव को प्रशम कहते हैं। यह प्रशम जिनका आत्मस्वभाव है ऐसे जिनेश्वर को प्रशमात्मा कहते हैं। आप उत्कृष्ट शांति सहित हैं अतः प्रशमात्मा हैं।
पुराणपुरुषोत्तमः = पुराण: चिरंतन: पुरुषेषु त्रिषष्टिलक्षणेषु उत्तमः पुरुषोत्तमः पुराणश्चासौ पुरुषोत्तमश्च पुराणपुरुषोत्तमः, अथवा पुराणेषु त्रिषष्टिलक्षणेषु प्रसिद्धः, पुरुषोत्तमः पुराणपुरुषोत्तमः, अथवा पुराणे अनादिकालीने, पुरुणि महति स्थाने शेते तिष्ठतीति पुरुषोत्तमः स चासौ चेतिपुराणपुरुषोत्तमः, अथवा पुरे शरीरे परमौदारिककाये अनति जीवति मुक्तिं यावद्गच्छति तावत् पुराणः स चासौ पुरुषो आत्मा पुराण पुणाः शरीरे तिष्ठतीत्यर्थः जीवन् मुक्तः इत्यर्थः ।
उक्तं च
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यं प्रशंसन्ति राजानो, यं प्रशंसन्ति सज्जनाः । साधवो यं प्रशंसन्ति, तमाहु पुरुषोत्तमः ॥
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पुराण चिरन्तन - अतिशय प्राचीन तथा त्रिषष्टि शलाका पुरुषों में प्रसिद्ध तीर्थंकर होते हैं, उनको पुराण पुरुषोत्तम कहते हैं। अथवा तिरेसठ लक्षण पुराणों में प्रसिद्ध जो पुरुषोत्तम हैं उन्हें पुराण पुरुषोत्तम कहते हैं। अथवा अनादि काल में जो उत्पन्न हुए हैं तथा पुरु- महास्थान में मोक्ष में जो निवास करते हैं उन्हें पुराण पुरुषोत्तम कहते हैं। अथवा पुरे शरीर में अर्थात् परमौदारिक शरीर में जो अनिति जीवन धारण करता है अर्थात् जब तक मुक्ति प्राप्त नहीं होती तब तक रहता है, उस आत्मा को पुराणपुरुषोत्तम कहते हैं। उसको ही जीवन्मुक्त कहते हैं। इस विषय में ऐसा कहा जाता है जिसकी राजा लोग प्रशंसा करते हैं, जिसकी सज्जन लोग प्रशंसा करते हैं तथा साधु जिसकी प्रशंसा करते हैं उसको पुरुषोत्तम कहते हैं।
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श्रीमद् अमरकीर्ति विरचित जिनसहस्रनाम टीका में तीसरा अध्याय पूर्ण हुआ ।