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भी जिनसहस्रनाम टीका - ७१ * . विराज-मान इत्यर्थः = कृत-पुण्यफल जिनको प्राप्त हुआ है ऐसे जिनराज कृती अन्वर्थ नाम धारक हैं। अथवा साता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम कर्म, उच्चगोत्र ये कर्म पुण्यकर्म हैं इनको कृत कहते हैं, अर्थात् कृत-पुण्य जिनके पास हैं, वे कृती हैं। पुण्यवान हैं, निदान दोष रहित विशिष्ट पुण्य प्रकृति युक्त ही तीर्थंकर होते हैं अत: वे कृती हैं। अथवा कृती शब्द योग्यतावाचक है, हरि, हर, ब्रह्मदेवादिकों में जिनका असम्भव है ऐसे इन्द्रादिकों से की गई पूजा के लिए जो योग्य है ऐसे जिनेश्वर कृती हैं अथवा कृती का अर्थ विद्वान् होता है। वह इस प्रकार अनन्त केवलज्ञान, अनन्त केवल दर्शन, इन दो गुणों से उत्पन्न हुआ जो लोकालोक जानने का सामर्थ्य उसको ही अनन्त शक्ति कहते हैं। इस विद्वान् से ही अनन्त सौख्य की समृद्धि होती है। ऐसी अनन्त सौख्य समृद्धि जिनको प्राप्त हुई है वे कृती हैं अर्थात् आप अनन्त चतुष्टय से विराजमान हैं। आप अत्यन्त कुशल हैं अतः कृती हैं।
कृतार्थः = कृता विहिता धर्मार्थकाम-मोक्ष-लक्षणाः पदार्थाः येनासौ कृतार्थः - धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष ऐसे चार पदार्थ जिन्होंने बनाये हैं वे जिनदेव कृतार्थ हैं। अर्थात् उपर्युक्त चार पदार्थों का विवेचन जिनेन्द्र ने किया है। अथवा आपने अपने आत्मा के सर्व पुरुषार्थ सिद्ध कर लिये हैं इसलिए कृतार्थ हैं।
सत्कृत्यः = क्रियते कृत्यं कृ वृषि मृजा वा क्यप्' समीचीनं कृत्यं कर्त्तव्यं प्रजापोषणलक्षणं यस्य स सत्कृत्य: - समीचीन प्रजापोषण कार्य जिन्होंने किया वे जिनेन्द्र सत्कृत्य हैं। असि-मषि-कृषि आदि अल्प सावध क्रिया जीवन के उपाय हैं, ऐसा प्रजा को उपदेश देकर उन्होंने प्रजापोषण कार्य किया है अत: जिनराज सत्कृत्य हैं। अथवा संसार के सारे जीवों के द्वारा सत्कार करने योग्य हैं अतः सत्कृत्य हैं।
कृत्त्कृत्यः = कृतं कृत्यं आत्मकार्य येन स कृतकृत्यः, अथवा कृतपुण्य, कृतं कार्यं कर्त्तव्यं करणीयं यस्य स कृतकृत्य:-किये हैं अपने योग्य कार्य जिन्होंने ऐसे जिनदेव कृतकृत्य हैं। अथवा पुण्यकार्य ही करने योग्य हैं, ऐसा जानकर जिनेश्वर ने वे ही कार्य किये हैं, अन्य पापकार्य नहीं किये अत: वे कृतकृत्य