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* जिनसहस्रनाम टीका - ७० * होता है अथवा पराधीनता के कारण कर्मबन्ध से रहित होने से आप स्वतंत्र
तन्त्रकृत् = तन्त्रं शास्त्रं करोतीति तन्त्रकृत् - तन्त्र शास्त्र को आपने ही किया है अतः आप तन्त्रकृत् हैं।
स्वन्तः = सुष्टुः शोभनं अन्त: सामीप्यं यस्य स्वन्तः = सुशोभन, कल्याण करने वाला है अन्त सामीप्य जिनका ऐसे आप हैं। अथवा आपका अन्त:करण उत्तम है अतः आप स्वन्त हैं।
कृतान्तान्तः = कृतान्तस्य सिद्धान्तस्य अंतं प्राप्तं येन स कृतान्तान्त;= कृतान्त-सिद्धान्त के अन्त तक आप प्राप्त हुए हैं। अथवा 'कृतान्त' मृत्यु का आपने अन्त किया है अतः आप कृतान्तान्त हैं।
कृतान्तकृत् = कृतान्तं करोतीति कृतान्तकृत् तथा चोक्तमनेकार्थे कृतान्तं क्षेमकर्मणि सिद्धान्त-यमदेवेषु = आए कृतान्त (शास्त्रों) के करने वाले होने से कृतान्तकृत् हैं, कृतान्त शब्द शास्त्र, क्षेम, कर्म सिद्धान्त, मृत्यु और देव अर्थ में आता है। आप सब का कल्याण करने वाले होने से भी कृतान्त-कृत् हैं। कर्मों का नाश करने के लिए ये यमराज के समान हैं अतः कृतान्तकृत् हैं। देव पद को करने वाले होने से भी कृतान्तकृत् हैं।
कृती कृतार्थ: सत्कृत्यः कृतकृत्यः कृतक्रतुः। नित्यो मृत्युञ्जयोऽमृत्युरमृतात्मामृतोद्भवः॥८॥
अर्थ : कृती, कृतार्थ, सत्कृत्य, कृतकृत्य, कृतक्रतु, नित्य, मृत्युञ्जय, अमृत्यु, अमृतात्मा, अमृतोद्भव ऐसे दश नाम जिनेश्वर के हैं।
टीका - कृतीः = कृतं पुण्यफलमस्यास्तीति कृती, अथवा सद्वेधशुभायुनर्नाम-गोत्राणि पुण्यमिति वचनात् कृतं पुण्यं विद्यते यस्य स कृती निदान-दोष-रहित विशिष्ट पुण्य प्रकृतिरित्यर्थः, अथवा कृती योग्यः हरिहर हिरण्यगर्भादीनाम-संभाविन्याः शक्रादिकृतायाः पूजायाः योग्य इत्यर्थाः, अथवा कृती विद्वान् अनंत-केवलज्ञानानंतकेवलदर्शन तदुत्थ लोकालोक विज्ञान सामर्थ्य लक्षणानंतशक्ति-तद्विज्ञानोत्थानंतसौख्यसमृद्धः कृतीत्युच्यते, अनंतचतुष्टय -