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* जिनसहस्रनाम टीका ६६
अमूर्तात्मा = स्पर्श, रस, गंध और वर्ण से रहित होने से आप अमूर्तात्मा
निर्लेपः = निर्गतो निर्नष्टो लेपः पापं कर्म्ममलकलंको यस्य स निर्लेपः, अथवा निर्गतो लेप: आहारो यस्य स निर्लेपः । उक्तं च श्वेते द्रव्येऽशने चापि लेपने लेप उच्यते = नष्ट हुआ है, पाप-मल-कलंक का लेप जिनके ऐसे जिनदेव निर्लेप हैं । अथवा निर्गतः नष्ट हुआ है, लेप भोजन आहार जिनका ऐसे प्रभु निर्लेप हैं। श्वेत, द्रव्य, भोजन, लेपन को लेप कहते हैं- द्रव्य, भोजन, श्वेत आदि वर्ण और उबटन आदि से रहित होने से आप निर्लेप हैं ।
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निर्मलः = निर्गतं मलं विण्मूत्रादि यस्य स निर्मलः । उक्तं च तित्थयरा तप्पियस हलहरचक्की य अद्धचक्की य देवा य भोगभूमा आहारो अस्थि णत्थि णीहारो ॥
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अथवा निर्गतानि मलानि पापकर्माणि यस्मादसौ निर्मलः, अथवा निर्गता 'मा' लक्ष्मीर्धनं येभ्यस्ते निर्मा निर्ग्रथमुनयः तान् लाति स्वीकरोति यः स निर्मलः, अथवा निर्मान् पंचप्रकारनिर्ग्रन्थान् लातीति निर्मलः । के ते पंचप्रकार निर्ग्रन्था इत्याह “पुलाक- वकुश कुशील-निर्ग्रन्थ-स्नातका-निर्ग्रन्थाः, " "संयम श्रुतप्रति सेवनातीर्थ-लिंगलेश्योपपादस्थानविकल्पतः साध्या" इत्यनयोः सूत्रयोः विवरणं तत्त्वार्थतात्पर्यवृत्तौ नवसहस्रश्लोक प्रमाणायां श्रुतसागरकृतायां ज्ञातव्यं । विस्तारभयाद् मयात्रैव न लिखितम् नष्ट हुआ है मल विष्ठा मूत्रादि जिनका ऐसे प्रभु हैं, इस विषय में ऐसा कहा है- तीर्थकर, उनके माता-पिता, बलभद्र पद के धारकपुरुष, षट्खण्डचक्रवर्ती, त्रिखण्ड चक्रवर्ती जिनको नारायण, प्रतिनारायण कहते हैं, भवनवास्यादिक चतुर्णिकायदेव तथा भोगभूमिज स्त्रीपुरुष इनके आहार है परन्तु नीहार मलमूत्र नहीं है । अथवा नष्ट हुआ है पापकर्म जिनसे ऐसे जिनदेव निर्मल हैं। अथवा 'निर्गता मा लक्ष्मीर्धनं येभ्यस्ते निर्मा मुनयः तान् लाति स्वीकरोति यः स निर्मलः' अथवा जिनके पास लक्ष्मी धन नहीं है । ऐसे मुनियों को निर्मा कहते हैं। ऐसे निर्मा मुनियों को जो स्वीकारते हैं वे जिनराज निर्मल हैं। अथवा निर्मान् पंच प्रकार के पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ तथा स्नातक ऐसे पाँच प्रकार के मुनियों को जो स्वीकारते हैं ऐसे जिनदेव निर्मल
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