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* जिनसहस्रनाम टीका ३५
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के कहे हैं, वसा, शुक्र, रक्त, मज्जा, मूत्र, विट्, विष्ठा, कर्ण में उत्पन्न होने दूकाने स्वेद ये बारह मल मनुष्य
का मल, नख, रलेना, के शरीर में होते हैं ।
अनन्तदीप्तिर्ज्ञानात्मा स्वयंबुद्धः प्रजापतिः । मुक्तः शक्तो निराबाधो निष्कलो भुवनेश्वरः ॥ ३ ॥
अनंतदीप्तिः = अनंता अमेया दीप्ति: केवलज्ञानद्युतिर्यस्य सोऽनंतदीप्तिः अथवा अनन्ता विनाशरहिता दीप्ति: वपुः कांतिर्यस्य सोऽनन्तदीप्ति: । अथवा अनन्ते मोक्षपदे दीप्तिर्यस्य स अनन्तदीप्तिः = जिनदेव के केवलज्ञान की दीप्ति बुद्धि के द्वारा नापने योग्य नहीं होती है, अतः वे अनन्तज्ञान के प्रकाश को धारण करते हैं, अथवा जिनप्रभु की शरीर कान्ति अनन्त, विनाश रहित होती है, अथवा अनन्त ऐसे मोक्षस्थान में जिनकी आत्मदीप्ति सदा रहती हैं, ऐसे वे जिनेन्द्र अनन्तदीप्ति के धारक हैं।
ज्ञानात्मा = ज्ञानं मत्तिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानि ज्ञानं - आत्मा स्वभावो यस्य स ज्ञानात्मा = मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय तथा केवलज्ञान ये ज्ञान जिसके आत्मा के स्वभाव हैं, उन्हें ज्ञानात्मा कहते हैं।
स्वयं बुद्धः = स्वयमात्मना गुरुमन्तरेण बुद्धो निर्वेदं प्राप्तः स स्वयंबुद्धः । उक्तं च
निन्नीरा तत्तत्तवा अप्पडिलेहा य अवहिणाणी य । निग्गरुआ अरहंता निक्कम्मा होड़ सिद्धा य ॥
स्वयं गुरु के बिना जिनेश्वर निर्वेद को, वैराग्य को प्राप्त होते हैं, इसलिए स्वयंबुद्ध कहे जाते हैं, वे जिनेश्वर स्वयंसिद्धों को नमस्कार कर दीक्षा लेते हैं।
नीर रहित, ताप रहित, अप्रतिलेह, अवधिज्ञानी, गुरु रहित, अरिहंत, निष्कर्म सिद्ध ये सर्व स्वयंबुद्ध होते हैं।
प्रजापति = प्रजानां त्रिभुवनस्थितलोकानां पतिः स्वामी स प्रजापतिः अथवा प्रजानां भरतबाहुबलि - वृषभसेनब्राह्मी सुन्दरी - प्रमुखानां संततीनां पतिः प्रतिपालको शास्त्रोपदेशको वा प्रजापतिः = त्रिलोक के सर्व प्राणियों के वे जिनदेव