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# जिनसहस्रनाम टीका - ४९. से जिसके अनुकूल हैं, अर्थात् जो सर्वदर्शनों का नायक है वे जिनेश्वर सर्वदर्शन कहे जाते हैं।
सर्वात्मा = सर्व अतत्ति जानाति इति स सर्वात्मा, अथवा सर्व प्राणिगण: आत्मा यस्य स सर्वात्मा = सर्वं अतति जानाति इति सर्वात्मा, सर्व वस्तुओं को जानने वाला जिनेश्वर सर्वात्मा है। अथवा सर्व प्राणिसमूह जिसका आत्मा है, ऐसा जिनेश्वर सर्वात्मा है।
सर्वलोकेशः = सर्वस्य लोकस्य त्रैलोक्यस्थित प्राणिगणस्य ईशः प्रभुः सर्वलोकेश:- सर्व त्रैलोक्य के अर्थात् त्रिलोकस्थित प्राणियों के जिनेश स्वामी
सर्ववित् = सर्व जगत् को जानते हैं अतः वे सर्ववित् हैं।
सर्वलोकजित् = सर्वलोकं पंचधासंसार जितवान् स सर्वलोकजित् = सर्व लोक को अर्थात् पंच प्रकार संसार को जिन्होंने जीता है ऐसे जिनेश्वर सर्वलोकजि कहे जाते हैं।
सुगतिः सुश्रुतः सुश्रुत् सुवाक् सूरिर्बहुश्रुतः। विश्रुतो विश्वतः पादो विश्वशीर्षः शुचिश्रवाः॥१०॥
अर्थ : सुगति, सुश्रुत, सुश्रुत्, सुवाक्, सूरि, बहुश्रुत, विश्वत:पाद, विश्वशीर्ष, शुचिनवा, इन दस नाम से प्रभु जाने जाते हैं।
सुगतिः - सुष्ठु शोभना गतिः मुक्तिः यस्य स सुगतिः पंचमगति स्वामीत्यर्थः - जिनकी गति शोभन है, सुंदर है ऐसे जिनराज सुगति हैं अर्थात् पंचमगति के, मुक्ति के स्वामी हैं। वा मोक्षरूप उत्तम गति को प्राप्त होने से सुगति हैं।
सुश्रुतः = शोभनं श्रुतं शास्त्रं यस्य स सुश्रुत: अबाधितार्थश्रुतः इत्यर्थः । अथवा सुष्टु अतिशयेन श्रुतो विख्यातस्त्रिभुवनजनप्रसिद्धःसुश्रुतः =
समीचीन शोभन शास्त्र जिसके हैं वह सुश्रुत कहलाता है अथवा अबाधित प्रत्यक्ष अनुमान प्रमाण के द्वारा जो बाधित न हो। अर्थ को सुश्रुत कहते हैं। अथवा जिनका श्रुत (वचन) तीन भुवनके प्राणियों में विख्यात हो, प्रसिद्ध हो उसको भी सुश्रुत कहते हैं।