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* जिनसहस्रनाम टीका ४०
स्थाणुः = स्था गति निवृत्तौ जगति प्रलीनेऽपि तिष्ठतीति स्थाणुः धेन्वादयः धेनुजिष्णु स्थाणु वेणुवग्नवः एते प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते =
स्था धातु गतिनिवृत्ति अर्थ में है अतः जो जगत् के प्रलय होने पर स्थिर रहते हैं, अपने स्थान वा स्वभाव से च्युत नहीं होते अतः आप स्थाणु हैं । धेनु, जिष्णु, स्थाणु, वेणु- ये प्रत्ययान्त निपात सिद्ध होते हैं ।
अक्षयः = नास्ति क्षयः विनाश: यस्य स अक्षयः अथवा न अक्षाणि इंद्रियाणि याति प्राप्नोति स अक्षयः, जिसका क्षय नहीं है, विनाश नहीं है, वह जिन अक्षय हैं, अथवा जिनके अक्ष याने इन्द्रियाँ नहीं हैं, वे अक्षय है।
अग्रणीग्रामणीनेता प्रणेतान्यायशास्त्रकृत् ।
शास्ता धर्मपतिर्द्धय धर्मात्मा धर्मतीर्थकृत् ॥ ५ ॥
अर्थ : अग्रणी, ग्रामणी, नेता, प्रणेता, न्यायशास्त्रकृत्, शास्ता, धर्मपति, धर्म्य, धर्मात्मा, धर्मतीर्थकृत् ये नाम जिननाथ के हैं।
अग्रणी: =
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अग्र त्रैलोक्योपरि नयति स अग्रणीः । उक्तं च
प्रांत संघातयोर्भिक्षा प्रकारे प्रथमेऽधिके । पलस्य परिमाणे वाऽबलंनोपरिवाच्ययोः ॥
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पुरः श्रेष्ठे दशस्वेव विद्धिरग्रं च कथ्यते = त्रैलोक्य के ऊपर अग्र भाग को ले जाने वाले प्रभु को अग्रणी कहते हैं । सोही कहा है- संघात, भिक्षा, प्रकार, प्रथम, अधिक, पल का परिमाण, अवलंबन, प्राप्त अपरिवाच्य, पुर, श्रेष्ठ इन दस को विद्वान् अग्रण कहते हैं। 'णी' धातु प्राप अर्थ में हैं, अतः जो सब मुखियापने को प्राप्त हुआ है उसको अग्रणी कहते हैं ।
ग्रामणीः = णीस प्रापणे णी णो नः, नी पूर्व ग्रामं सिद्धं समूह, नयतीति ग्रामणी 'सत्सुद्धिषडुक्विप् । अग्रग्राभ्यां नियोणत्वं वैर्लोपो पृक्तस्य =
'णी' धातु प्राप्ति अर्थ में है, अतः 'णी' का 'नी' आदेश हुआ है 'ग्राम' का अर्थ है सिद्धों का समूह। अतः जो सिद्धसमूह को प्राप्त कराता है, सिद्ध स्थान में ले जाता है वह ग्रामणी कहलाता है। सर्व प्राणियों में श्रेष्ठ है, मुखिया है इसलिए भी ग्रामणी है।