________________
* जिनसहस्रनाम टीका - ३० विद्वानों में अधिशब्द आशाबन्धक, चिन्ता, पीडा, दु:ख, अधिष्ठान और मनुष्य शब्द में प्रयुक्त किया है।
अथवा धर्माधौ धर्मचिन्तायां अक्षाणि इन्द्रियाणि यस्य स धर्माध्यक्षः ।
अथवा - धर्म का चिंतन करने में जिसकी इन्द्रियाँ लीन हैं उसको धर्माध्यक्ष कहते हैं।
इन्द्रिय, आत्मा, ज्ञान, रावण का पुत्र, सूचिका, बहेड़ा, पासा, रथ की कील आदि अनेक अर्थों में अक्ष शब्द का प्रयोग होता है।
___दमीश्वरः = दमः उपशम: इन्द्रियनिग्रहो वा विद्यते येषां ते दमिनः तेषामीश्वर: स्वामी स दमीश्वरः । क्रोधादि कषायों का उपशमन करना अथवा इन्द्रियों को अपने विषयों में नहीं जाने देना दम कहलाता है। क्रोधादि कार्यों का वा इन्द्रियों का दमन करने वाले दमी कहलाते हैं अर्थात् मुनिगणों को दमी कहते हैं, जो मुनियों के ईश्वर हैं वे दमीश्वर कहलाते हैं ॥१॥
श्रीपतिर्भगवानहन्नरजा विरजाः शुचिः। तीर्थकृल्केवलीशानः पूजाह: स्नातकोऽमलः॥२॥
श्रीपतिः = अभ्युदय (स्वर्गादिसम्पत्ति), निःश्रेयस् (मोक्ष) लक्ष्मी के पति (स्वामी) श्रीपति कहलाते हैं।
भगवान् = भग (ज्ञान) परिपूर्ण ऐश्वर्य, वैराग्य, मोक्ष और तप जिसके हैं वे भगवान कहलाते हैं। भग शब्द के छह अर्थ होते हैं. ऐश्वर्यस्य समनस्य ज्ञानस्य तपसः श्रियः।
वैराग्यस्याथ मोक्षस्य षण्णां भग इति स्मृतः।।
समग्र ऐश्वर्य, ज्ञान, तप, श्री, वैराग्य और मोक्ष इन छह अर्थों का वाचक भग-शब्द है। अत: इनसे युक्त को भगवान कहते हैं।
___ अर्हन् = इन्द्रादि कृत अन्य जीवों में असंभवी, पूजा के योग्य अवस्था को प्राप्त हो उसको अर्हन् कहते हैं। "अर्ह' धातु पूजा अर्थ में है इस धातु में वर्तमान काल में "शन्तृङ्" और आनश प्रत्यय होता है, उसका प्रथमा एक