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जैन पूजान्जलि तू विभाव के तरुओ की छाया में कब तक सोएगा ।
अप तप व्रत का श्रम करके भी बीज दुखों के बोएगा ।। इसीलिए मैं शरण आपकी आया हूँ जिन देव महान । सम्यकदर्शन मुझे प्राप्त हो, पाऊँस्वपर भेद विज्ञान ।।१२।। नित्य नियम पूजन करके प्रभु निजस्वरुप का ज्ञान करूँ। पर्यायो से दृष्टि हटा, बन द्रव्य दृष्टि निज ध्यान धरूँ ॥१३॥ ॐ ह्री श्री सर्वजिनचरणाग्रेषु पूर्णाय॑ नि स्वाहा ।।
नित्य नियम पूजन करूँजिनवर पद उर धार । आत्म ज्ञान की शक्ति से हो जाऊँभव पार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्य मन्त्र - ॐ ह्री श्री सर्वजिनेन्द्रेभ्यो नम ।
श्री देवशास्त्रगुरु जिन पूजन वीतराग अरिहत देव के पावन चरणो मे बन्दन । द्वादशाग श्रुत श्री जिनवाणी जग कल्याणी का अर्चन ।। द्रव्य भाव सयममय मुनिवर श्री गुरु को मैं करूँ नमन । देव शास्त्र गुरु के चरणो का बारम्बार करूँ पूजन ॥ ॐ ही श्री देव शास्त्र समूह अत्र अवतर अवतर सवौषट्, ॐ ही श्री देव शास्त्र गुरु समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, ॐ ह्री श्री देव शास्त्र गुरु समूह अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । आवरण ज्ञान पर मेरे है, हे जन्म मरण से सदा दखी । जब तक मिथ्यात्व हृदय मे है यह चेतन होगा नही सुखी ।। ज्ञानावरणी के नाश हेतु चरणो मे जल करता अर्पण । देव शास्त्र गुरु के चरणो का बारम्बार करूँ पूजन ॥१॥ ॐ ह्री श्री देवशास्त्रगुरुभ्यो ज्ञानावरणकर्मविनाशनाय जल नि । दर्शन पर जब तक छाया है ससार ताप तब तक ही है । जब तक तत्त्वो का ज्ञान नहीं मिथ्यात्व पाप तबतक ही है ।। सम्यक श्रद्धा के चदन से मिट जायेगा दर्शनावरण देव. ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यो दर्शनावरणकर्म विनाशनाय चन्दन नि ।