Book Title: Jain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Author(s): Shweta Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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२ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
न्यायवैशेषिक-दर्शन में कारण को निम्न रूप में परिभाषित किया गया है'यस्य कार्यात् पूर्वभावो नियत: अनन्यथासिद्धश्च, तत् कारणम् कारण कार्य का पूर्वभावी होता है। पूर्वभाव का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है- १. कार्य की उत्पत्ति के पूर्व रहना २. कार्योत्पत्ति के अव्यवहित पूर्वक्षण में रहना। इस तरह अव्यवहित पूर्वक्षण में और किसी समय कार्य के पूर्व रहने वाले पदार्थ दोनों ही पूर्वभावी कारण होंगे। ये पूर्ववर्ती कारण कादाचित्क नहीं हों, इसलिए लक्षण में 'नियत' शब्द का विधान किया गया है। 'नि' उपसर्ग पूर्वक 'यम्' धातु से 'क्त' प्रत्यय जोड़ देने पर 'नियत' शब्द की निष्पत्ति होती है। अत: नियत का अर्थ है- 'नियम से युक्त होना' जो नियमित रूप से कार्य का पूर्ववर्ती हो वह नियतपूर्ववर्ती कहलाता है। निश्चित (नियत) पूर्ववर्ती की भी अनेक स्थितियाँ संभावित हैं, इसलिए उक्त परिभाषा में 'अनन्यथासिद्ध' शब्द को जोड़ा गया है। अन्यथासिद्ध से भिन्न अनन्यथासिद्ध होता है। अन्यथासिद्ध से तात्पर्य जिसका कार्य के साथ साक्षात् संबंध न हो। अन्यथासिद्ध से भिन्न यानी कार्य के साथ साक्षात् संबंध वाला कारण अनन्यथासिद्ध होता है। इस प्रकार कारण वह कहलाता है जो नियतपूर्ववर्ती और अनन्यथासिद्ध हो।
कारणों के द्वारा सम्पन्न क्रिया कार्य कहलाती है। नैयायिकों ने परिभाषित करते हुए कहा है- 'अनन्यथासिद्धनियतपश्चाद्भावित्वं कार्यत्वम् अर्थात् अन्यथासिद्ध न होकर नियतरूप से कारण के पश्चात् होना ही 'कार्य' का लक्षण है। 'घट' के प्रति अन्यथासिद्ध न होकर घट के पूर्व नियत रूप से उपस्थित होने वाले कुलाल, चक्र, चीवर, दण्ड आदि और 'पट' के प्रति तुरी, वेमा आदि घट एवं पट कार्य के प्रति क्रमश: कारण कहे जाते हैं। इन सब कारणों के उपस्थित होने के पश्चात् उत्पन्न होने से 'घट' या 'पट' को यथाक्रम उन सबका कार्य कहा जाता है। कारण-कार्यवाद के प्रमुख सिद्धान्त
भारतीय दर्शन में वैदिक-अवैदिक सभी दर्शनों ने कारण-कार्य सिद्धान्त को स्वीकार किया है। किन्तु उसके स्वरूप के संबंध में सबमें मतभेद पाया जाता है। यह मतभेद उनकी अपनी तत्त्वमीमांसा के कारण है। कारण-कार्य के संबंध में प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार हैं
१. सत्कार्यवाद- सांख्य २. सत्कारणवाद (विवर्तवाद)- वेदान्त ३. असत्कार्यवाद- नैयायिक ४. असत्कारणवाद- बौद्ध ५. सदसत्कार्यवाद- जैन
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