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सुबह भी आराम से उठना अच्छा लगता था। सुबह अगर जल्दी की ट्रेन पकड़नी होती तो रात को देर तक नाश्ता किया होता तो सुबह जल्दी नहीं उठ पाते थे और फिर जल्दी उठने के लिए वे कला करते थे। नल में सुबह-सुबह पानी आना शुरू होता था, तो वे नल के नीचे बाल्टी और थाली इस तरह से रख देते थे कि जब पानी आए तो थाली पर आवाज़ हो ताकि वे उठ जाएँ लेकिन फिर भी उठ नहीं पाएँ। सालों से देर से, साढ़े नौ-दस बजे नहाने की आदत थी।
सोलह साल की उम्र में मुहल्ले में आते-जाते हुए रौब से चलते थे, उससे ऐसा लगता था कि धरती भी काँप रही है।
अहंकारी गुण था इसलिए दोस्तों के बीच एक बार माचिस जलाकर उस पर अंगूठा रखा, फिर भी हाथ स्थिर रखा, हिलने नहीं दिया और चेहरे पर भी कोई असर नहीं। क्षत्रिय परमाणु बहुत सख्त होते हैं!
भादरण गाँव में नाटक देखे थे। कई बार तो नाटक कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट ले लेते थे। आज की रात का कॉन्ट्रैक्ट हमारा है, उसके बाद जो पैसे बचते थे, वह उनका नफा होता था। बचपन से ही तरहतरह के अनुभव हुए थे। उस ज़माने (1928) में सिनेमा शुरू हुए। फिर नाटक खत्म होने लगे। सिनेमा की उन्नति होती गई। तब उन्होंने ऐसा सोचा कि, 'दुनिया में... सिनेमा का क्या परिणाम आएगा? यह तो नीचे फिसलने की खोज है। हिन्दुस्तान को खराब कर देगा! अपने संस्कारों का क्या होगा? लोगों की रुचि सिनेमा की तरफ बढ़ी। कलियुग तेज़ी से आ रहा है। उल्टा असर होगा'। फिर अंत में यह विचार आया कि, 'इसका उपाय क्या है? क्या अपने पास कोई सत्ता है? यदि सत्ता नहीं है तो ऐसे विचार किसी काम के नहीं हैं, तो क्या हिन्दुस्तान का ऐसा ही होगा?' फिर एकांत में बैठकर सोचा तो अंदर से जवाब मिला कि 'जो साधन तेज़ी से उल्टा प्रचार कर सकते हैं, वे सीधा प्रचार भी उतनी ही तेज़ी से करेंगे। सीधे प्रचार के लिए ये साधन बहुत अच्छे हैं'। दादा कहते हैं कि, 'ये जो साधन बने हैं, यही सब साधन हिन्दुस्तान को सुधारेंगे'। तो आज हम देख रहे हैं कि
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