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ही करनी है। उसमें तीन सौ रुपए तनख्वाह मिलेगी, बहुत मान-सम्मान मिलेगा। फादर की क्या इच्छा है? उन्हें किस फायदे के लिए मुझे सूबेदार बनाना है? "बाप को ऐसा लगता है कि मेरा बेटा सूबेदार बने तो उसे जीवन में मज़ा आ जाएगा और बड़े भाई का ऐसा रौब पड़ जाएगा कि 'मेरा भाई सूबा है।" लेकिन मेरी क्या दशा होगी? मैं अगर सूबेदार बनूँगा तो मेरे सिर पर सरसूबेदार आएगा और फिर वह सरसूबेदार मुझे डाँटेगा। कोई डाँटे वह मुझे पुसाएगा ही नहीं। तभी से गाँठ बाँधी कि मुझे सूबेदार नहीं बनना है। पान की दुकान लगा लूँगा लेकिन स्वतंत्र रहूँगा इस तरह सूबेदार बनकर हमें परवशता नहीं चाहिए। अपने ऊपर कोई ऊपरी नहीं चाहिए। नौकरी नहीं करूँगा, स्वतंत्र जीवन जीऊँगा इसलिए अंत में तय किया की मैट्रिक पास होऊँगा तभी सूबेदार बनाएँगे न! तो फिर हमें मैट्रिक में पास ही नहीं होना है।
अठारहवें साल में बड़ौदा में मैट्रिक की परीक्षा देने गए थे। वहाँ पर भी घर में रहना टाला और होस्टल में रहे। हॉस्टल में खाया-पीया, मित्रों के साथ मज़े किए और अंत में आराम से मैट्रिक में फेल हो गए। उन्होंने यह भी सोचकर रखा था कि मैं फेल होऊँगा तो उसका परिणाम क्या आएगा! या तो भाई उन्हें अपने कॉन्ट्रैक्ट के काम में लगा देंगे और यदि भाई मना करेंगे तो मैं अपने आप ही पान की दुकान लगा लूँगा लेकिन स्वतंत्र जीवन जीऊँगा।
फिर भाई ने उनसे पूछा कि, 'कॉन्ट्रैक्ट का काम तुझे करना आएगा? काम पर पड़े रहना पड़ेगा'। उसके बाद वह खुद उस काम में जॉइन हो गए। घर का व्यापार था, और फिर स्वतंत्रता थी इसलिए अंबालाल भाई को तो यह पसंद आ गया। ब्रिलियन्ट (तेजस्वी) दिमाग था इसलिए छः महीने में ही एक्सपर्ट बन गए।
बड़े भाई भी उन पर खुश हो गए डेढ़ साल में तो वे इस काम में फर्स्ट नंबर ले आए।
[3] उस ज़माने में किए मौज-मज़े कॉन्ट्रैक्ट का काम शुरू करने के बाद में उनके पास पैसों की
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