Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
(XL) चारों पैर उत्तम रूप में शोभित हो रहे हैं। भगवती सूत्र के दो नयन-ज्ञान और चारित्र हैं; हाथी के पक्ष में उसके दो नयन आकर्षक हैं। भगवती सूत्र में दो नय हैं-द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक; हाथी के दो दन्त-मूशल हैं। भगवती सूत्र में निश्चयनय और व्यवहारनय समुन्नत हैं; जय-कुञ्जर हाथी के दो समुन्नत कुम्भस्थल हैं। भगवती सूत्र में प्रस्तावना-वचन की रचना महाशुण्डादण्ड की तरह है; हाथी के पक्ष में उसकी शुण्ड महान् दण्ड की तरह है। भगवती सूत्र के निगमन-वचन हैं, वे उपसंहार-रूप हैं; हाथी के पक्ष में उसकी जो पूंछ है वह अतुच्छ है। भगवती सूत्र में काल आदि अष्टविध ज्ञान-आचार, प्रवचन तथा उपचार-रूप परिकर है; हाथी के पक्ष में उसका परिवार है। भगवती सूत्र में दो प्रकार की आज्ञा का विचार है-उत्सर्ग-मार्ग और अपवाद-मार्गः हाथी के पक्ष में सम्यक् प्रकार से उछलने वाले दो अतुच्छ घंटाओं का घोष है। भगवती सूत्र के यशःपटह की पटु प्रतिध्वनि दिशा-चक्रवाल में गुंजित है; हाथी के पक्ष में उसकी यशःपटह की प्रतिध्वनि भी दिशा-चक्रवाल में गुंजित हो रही है। भगवती सूत्र स्याद्वाद के अंकुश से अंकुशित है; हाथी भी अंकुश द्वारा अंकुशित है। भगवती सूत्र विविध हेतु-रूपी शस्त्र से समन्वित होकर मिथ्यात्व-, अज्ञान-, अविरतिरूप शत्रु-सेना का दलन करने वाला है, जो भगवान महावीर रूपी महाराज द्वारा नियुक्त है। सेनापति के समान गच्छनायक अपनी बुद्धि से भगवती सूत्र की व्याख्या करते हैं, जय-कुंजर हाथी को भी सज्ज किया जाता है। मुनि-रूपी योद्धा बाधा-रहित होकर भगवती सूत्र का अधिगमन कर उस (हाथी) का आरोहण करने में समर्थ हो, उसके लिए वृत्ति और चूर्णि रूप नाडिकाएं हैं, जो वांछित वस्तु के साधने में समर्थ हैं। अन्य जीवाभिगम आदि आगमों के विविध विवरण-रूप संवादी सूत्रों के अमूल्य लेशों से महा झूल के समान है; हाथी के पक्ष में यह महा-झूल है। इस प्रकार महा-उपकारी, हितकारी, हस्तिनायक (भगवान् महावीर) के आदेश से भगवती सूत्र की रचना सुधर्मा स्वामी द्वारा की गई थी। (२) विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम एक वृहत्तम आकर ग्रन्थ है। आकार में यह सब आगमों से वृहत् है, उसी प्रकार इसका प्रतिपाद्य भी सर्वाधिक बहुआयामी है। विषयों की दृष्टि से भगवती एक महान् उदधि है। “समवायांग और नन्दी के अनुसार प्रस्तुत आगम में ३६ हजार प्रश्नों का व्याकरण है।' तत्त्वार्थराजवार्तिक, षट्खण्डागम और कसायपाहुड के अनुसार प्रस्तुत आगम में ६० हजार प्रश्नों का व्याकरण है। प्रस्तुत आगम के विषय के सम्बन्ध में अनेक सूचनाएं मिलती हैं। समवायांग में बताया गया है कि अनेक देवों, राजाओं और राजर्षियों ने भगवान् से विविध प्रकार के प्रश्न पूछे और भगवान् ने विस्तार से उनका उत्तर दिया। इसमें स्वसमय, परसमय, जीव, अजीव, लोक और अलोक व्याख्यात हैं। नंदी में भी यही १. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सूत्र ९३; कसायपाहुड, प्रथम अधिकार, पृ. नंदी, सूत्र ८५।
१२५। २. तत्त्वार्थराजवार्तिक,
१/२०; ३. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू. ९३। षट्खण्डागम, भाग १, पृ. १०२;