Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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( XXXIX ) सहस्राब्दी में अधिक प्रचलित हुआ है। व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र की अपनी विशिष्टता थी, इसलिए विशेषण के रूप में इसे 'भगवती' के रूप में समादृत किया गया है। समवायांग सूत्र में विआहपण्णत्ती के साथ भगवती विशेषण-रूप में प्रयुक्त है।'
___ "प्रश्नोत्तर की शैली में लिखा जाने वाला ग्रन्थ व्याख्याप्रज्ञप्ति कहलाता है। व्याख्या का अर्थ है-विवेचन करना और प्रज्ञप्ति का अर्थ है-समझाना। जिसमें विवेचनपूर्वक तत्त्व समझाया जाता है उसे व्याख्याप्रज्ञप्ति कहा जाता है।"२
"अभयदेवसूरि ने प्रस्तुत सूत्र के प्रारम्भ में व्याख्याप्रज्ञप्ति पद की व्याख्या की है। उनके अनुसार प्रस्तुत आगम में गौतम आदि शिष्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में महावीर ने जो प्रतिपादन किया, उसकी प्रज्ञापना है। इसलिए इसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है।"३
भगवती सूत्र के टीकाकार अभयदेवसूरि ने भगवती सूत्र की तुलना जयकुञ्जर के साथ की है। इसका राजस्थानी में पद्यानुवाद श्रीमज्जयाचार्य ने बहुत ही ललित भाषा में किया है। इसका भावानुवाद इस प्रकार है-यह व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक पंचम अंग-आगम जिसका दूसरा नाम भगवती है, सझे हुए जय-कुंजर नामक हाथी की भांति समुन्नत है। इसके ललित यानी मनोहर पदों की पद्धति (रचना-पंक्ति) प्रबुद्धजनों के मन का रञ्जन करने वाली है अर्थात् प्राज्ञ जनों को रिझाने वाली है। इसमें उपसर्ग, निपात और अव्यय अर्थात् प्र आदि, च आदि शब्दों का प्रयोग है। तुलना में हाथी के पक्ष में इसका तात्पर्य यह है-उपसर्ग यानी उपद्रव, उसका निपात होने पर अव्यय अर्थात् अक्षयरूप वाला यह हाथी है। यह सूत्र घन एवं उदार शब्द वाला है; हाथी के पक्ष में यह मेघ की तरह गम्भीर ध्वनि करने वाला है। यह सूत्र लिंग और विभक्ति से युक्त है; हाथी के पक्ष में पुरुष चिह्न वाला है। भगवती सूत्र सद्आख्यात है तथा सद्-लक्षणों से युक्त है; हाथी के पक्ष में प्रसिद्ध और अच्छे-अच्छे लक्षणों वाला है। भगवती सूत्र देव-अधिष्ठित है अर्थात् गणधर श्रुतदेवता द्वारा सेवित है; हाथी के पक्ष में जय-कुञ्जर हाथी देवांशी है अर्थात् देवताओं के द्वारा उसकी सेवा होती है। भगवती सूत्र के ये उद्देशक सुवर्णमंडित हैं: जय-कुञ्जर हाथी के पक्ष में उसका शिरोभाग अति प्रशस्त है। भगवती सूत्र नाना प्रकार के अद्भुत प्रवर-चरित्र वाले छत्तीस हजार प्रश्न-प्रमाण श्रुत-देह वाला है तथा चार अनुयोग-रूपी चरण वाला है; हाथी के पक्ष में उसका देह अद्भुत है तथा उसके चार चरण अर्थात् पैर हैं। प्रथम चरण द्रव्यानुयोग अर्थात् द्वितीय अंग सूत्रकृतांग आदि, द्वितीय चरण चरणकरणानुयोग अर्थात् प्रथम अंग आचारांग आदि, तृतीय चरण गणितानुयोग अर्थात् चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि तथा चौथा चरण धर्मकथानुयोग अर्थात् ज्ञाता सूत्र आदि। इस पंचम अंग भगवती में ये चारों अनुयोग व्याख्यात हैं; हाथी के पक्ष में उसके
समवाओ, ८४/११-वियाहपण्णत्तीए णं भगवतीए चउरासीई पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता।
२. भगवई (भाष्य), खण्ड-१, भूमिका,
पृ. १५। ३. भगवती-वृत्ति, पत्र २। ४. भगवती-जोड़, खण्ड १, पृ. २५,२६