Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(XxxVIII)
श्रुतपुरुष दृष्टिवाद
विपाकश्रुत
प्रश्नव्याकरण
अनुत्तरोपपातिकदशा
अन्तकृतदशा
उपासकदशा
ज्ञाताधर्मकथा
व्याख्याप्रज्ञप्ति
समवायांग
स्थानांग
सूत्रकृतांग
आचारांग "भगवान महावीर की वाणी के आधार पर गौतम आदि गणधरों ने अंग-साहित्य की रचना की।"
"अंगों की रचना गणधर करते हैं। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि स्वयं गणधरों के द्वारा जो ग्रन्थ रचे जाते हैं उनकी संज्ञा अंग है। उपलब्ध अंग सुधर्मा स्वामी की वाचना के हैं। सुधर्मा स्वामी भगवान महावीर के अनन्तर शिष्य थे, अतः वे उनके समकालीन थे। इस आधार पर अंगों का रचना-काल सामान्य रूप से ईसा पूर्व छठी शताब्दी माना जा सकता है।''२ इस प्रकार अंग-आगम प्राचीनता की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रस्तुत आगम-भगवई (विआहपण्णत्ती)३ (१) नाम-मीमांसा
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का पांचवां अंग है। इस आगम का मूल नाम है-विआहपण्णत्ती अर्थात् व्याख्याप्रज्ञप्ति। इस आगम का दूसरा नाम भगवई अर्थात् भगवती है। यद्यपि मूल नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है, फिर भी इसका अपर नाम भगवती वर्तमान १. ठाणं, भूमिका, पृ. १५।
की भूमिका में विस्तार से प्रकाश डाला २. ठाणं, भूमिका, पृ. १७।
गया है। यहां पर मुख्यतः उसके आधार ३. इस विषय पर भगवई (भाष्य) खण्ड १ पर संक्षेप में प्रस्तुतीकरण किया गया है।