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भगवती सूत्र-इन्द्रभूतिजी की महानता
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- जब भगवान् के पधारने की खबर राजगृह नगर निवासियों को मिली तब राजा, राजकुमार, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि तथा सामान्य जनता सभी भगवान् को वन्दनार्थ गई।
भगवान् ने श्रेणिक राजा, चेलना देवी आदि उस महामानव मेदिनी के समक्ष सर्व भाषानुगामिनी वाणी के द्वारा धर्मकथा कही । धर्मकथा सुनकर एवं हृदय में धारण कर जनता अत्यन्त हर्षित एव सन्तुष्ट होती हुई वापिस अपने स्थान पर चली गई।
इन्द्रभूतिजी को महानता
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमसगुत्ते णं सतुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए बजरिमहणारायसंघयणे कणयपुलयणिहसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूटसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से चोदसपुव्वी चरणाणोवगए सव्वक्खरसण्णिवाई समणरस भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । .. . शब्दार्थ-तेणं कालेणं-उस काल तेणं समएणं-उस समय में समणस्स भगवओ महावीरस्स-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के जेठे-ज्येष्ठ-सब से बड़े अंतेवासी-शिष्य इंदभूई णाम अणगारे-इन्द्रभूति नाम के अनगार थ । गोयमसगुत्ते-उनका गौतम गोत्र था । सत्तुस्सेहे-उनका शरीर सात हाथ ऊंचा था। समचउरंससंठाणसंठिए-समचतुरस्र संस्थान था। वज्जरिसहणारायसंघयणे-वज्र-ऋषभ-नाराच संहनन था। कणयपुलयणिहसपम्हगोरे-कसौटी पर खींची हुई मोने की रेखा के समान तथा कमल की केशर के समान
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