Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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महान व्यक्तित्व के धनी
पं० विजयकुमार जैन, साहित्याचार्य, दर्शनाचार्य, श्रीमहावीरजी
वर्तमान जैन विद्वत् समाजमें श्री पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य एक ऐसे विद्वान् हैं जिनका नाम हृदय पटलपर अंकित होते ही राष्ट्रसेवा, समाज सेवा, साहित्य सेवा एवं अनवद्य विद्वत्ताका मूर्त रूप साक्षात्कृत् हो जाता है । आपकी गंभीर मनीषा एवं सरलताके प्रति श्रद्धाभावसे हृदय ओतप्रोत और माथा अवनत हो जाता है । आप हैं जैन समाज के प्रथम प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य । कितने भाग्यवान हैं पं० व्याकरणाचार्यजी, कि सरस्वती और लक्ष्मी जिनके आजू-बाजू सेवाके लिये खड़ी हैं। राष्ट्रके प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी होते हुए भी आजकी कुटिल राजनीति से पूर्णतः विरक्त समाजमें व्याप्त धार्मिक कुरूड़ियोंपर आपने सक्रिय प्रहार किया और गजरथ जैसी अपव्ययी प्रवृतिका दृढ़तासे विरोध किया। वर्णों प्रत्यमाला अनेक वर्षो मंत्री रहकर जहाँ आपने अद्वितीय साहित्य सेवा की, वहीं खानिया तत्त्व चर्चा - समीक्षा, जैनशासन में निश्चय और व्यवहार जैसे चिन्तनीय ग्रन्थोंकी रचनायें जैन आगमका विलोडनकर आपने जिनवाणीकी अपूर्व सेवा की है। इन ग्रन्थरश्नोंके माध्यम से जैनागमके क्षेत्र में उठी भ्रान्तियोंको आपने अपनी समन्वयात्मक समीक्षासे दूर कर सम्यक् तत्त्वबोध प्रधान किया। भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत् परिषद् के अध्यक्ष पदसे आपने जैन विद्वानोंको साहित्य व समाज सेवा एवं जैन तत्त्व ज्ञानके प्रसार की नयी दिशा दी है ।
१ आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं ३१
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ऐसे ज्ञानपुज सहृदय एवं सरल चेता पं० जी का अभिनंदन करते हुए कामना है शताधिक वर्षों तक साहित्य समाज सेवा व जैन तत्वज्ञानका उद्घाटन करते हुए, हम सबके लिये अविरल प्रेरणा प्रदान करते रहें ।
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बहुमुखी प्रतिभा के धनी
● पं० हरिश्चन्द्र शास्त्री, श्री गो० दि० जैन सि० सं० महावि० मुरैना
श्रद्धास्पद पूज्य पंडित जी समाजके मान्य विद्वानोंमें एक है। आप व्याकरण शास्त्र के साथ-साथ जैन सिद्धान्त एवं जैनदर्शनके भी महान् जाता हैं । इसका प्रमाण है आपके द्वारा लिखे गये दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक ग्रन्थ है । आप स्वयं एक दिनचर्या हैं। मैं पण्डितजीसे तो कुछ प्राप्त नहीं कर सका, पर उनके दर्शन से ही अपने आपको धन्य मानता हूँ।
ऐसे पूज्य पंडितजी के प्रति मैं मन, वचन, कायसे उनके चिरायु होनेकी मंगल शुभकामना करता हुआ, उनके चरणोंमें प्रणाम करता हूँ ।
जिनवाणीके अपूर्व सेवक
• पं० जमुनाप्रसाद शास्त्री, कटनी
मान्यवर श्रीमान् बंशीधरजी जैन व्याकरणाचार्य हमारे
के चिर परिचित है। उनका सामा रण जीवन, उच्च विचार, अनुपम ज्ञान, सरल स्वभाव सदा रहा। पं० जीने सदैव धर्म समाज एवं राष्ट्रकी सेवा तन मन धनसे को आप स्वतन्त्रताके महासमरके सेमानी भी थे। जीवन एक विनम्र व्यापारीके रूपमें बिताया। आपके किये यश और अपयश एक-सा रहा कोई विकार नहीं । गृह लक्ष्मीके वियोग होनेपर भी आपने अपना मार्ग नहीं छोड़ा और जिनवाणीकी अपूर्व सेवा कर रहे हैं। आपको कोई लोभ देकर विचलित नहीं कर पाया । ऐसे सेवाभावी गुरु बंशीधर व्याकरणाचार्य युग-युग जियें - उनका नाम अमर रहे ।
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