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तुम मारते ही चले जाते हो। प्रक्रिया में जुड़ जाना मन की, मन को बल देना है।
तो अगर तुम्हें मंत्र शब्द बहुत प्रिय हो तो यही तुम्हारा मंत्र है महामंत्र, कि मन से पार हो कर साक्षी बन जाना है । और जिन संन्यासियों की तुम बात कर रहे हो, पुराने ढब के संन्यासी, उसे थोड़े सावधान रहना। वैसा संन्यास सड़ा-गला है। वैसा संन्यास बड़े धोखे और प्रवंचना से भरा है। वैसा संन्यास एक शोषण है।
उधर से आए सेठ जी इधर से संन्यासी
एक ने कही,
एक ने मानी
दोनों ठहरे शानी
दोनों ने पहचानी
सच्ची सीख पुरानी
दोनों के काम की
दोनों की मनचीती
जय सियाराम की
सीख सच्ची सनातन
सौ टंच सत्यानाशी !
पुराना संन्यास भगोड़ापन है। पुराना संन्यास पलायन है जीवन के संघर्ष से विकास तो जीवन के संघर्ष में है। क्योंकि जहां संघर्ष है, जहां चुनौती है, वहीं जागने का उपाय है। अगर भाग गए संघर्ष से, सो जाओगे। इसलिए तो तुम पुराने ढंग के संन्यासी को देखो, न प्रतिभा की कोई चमक है, न आंखों में शांति है, न प्राणों में किसी गीत का गुंजन है, न पैरों में नृत्य है। भाग गया है, भगोड़ा है। कमजोर है, कायर है। नहीं लड़ पाया, तो अगर खट्टे हैं, ऐसा कहने लगा है। नहीं पहुंच पाया अंगसे तक, तो अंगूरों को गाली देने लगा है।
निश्चित ही यह भगोड़ा किन्हीं लोगों के काम का है। जिनकी सत्ता है-धन हो, पद हो, राजनीति हों - जिनकी सत्ता है, उनके लिए यह सहयोगी है। क्योंकि यह एक तरह की अफीम पैदा करता है समाज में, भगोड़ापन पैदा करता है। यह एक तरह की तंद्रा पैदा करता है, एक तरह की निद्रा पैदा करता है। यह लोगों को यही समझाए जाता है : यह सब माया है, भागो। लेकिन अगर माया है तो भाग क्यों हो?
कोई आदमी भागा चला जा रहा है और तुम से कहता है: मत जाओ उधर, उधर एक रस्सी पड़ी है जो सांप जैसी दिखती है, उसी के करण मैं भाग रहा हूं। थोड़ा सोचो, अगर रस्सी है और सांप जैसी दिखती है तो भाग क्यों रहे हो? नहीं, तुम्हें पक्का पता है कि सांप ही है। रस्सी नहीं है, तो तुम शास्त्र दोहरा रहे हो। अगर रस्सी ही होती तो भागते क्यों? माया से कोई भागेगा क्यों? और