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आराधना कथाकोश
निरुपाय होकर वह मर गया। उसके दाँत और मोतो एक भोलके हाथ लगे। भीलने उन्हें एक सेठके हाथ बेच दिये । सेठके द्वारा वे ही दाँत और मोती तुम्हारे पास आये। तुमने दाँतोंके तो पलंगके पाये बनवाये और मोतियोंका अपनी पत्नीके लिये हार बनवाया । यह संसारकी विचित्र लीला है । इसके बाद तुम्हें उचित जान पड़े सो करो" । आर्यिका इतना कहकर चप हो रही। पूर्णचन्द्र अपने पिताकी कथा सुनकर एक साथ रो पड़े। उनका हृदय पिताके शोकसे सन्तप्त हो उठा । जैसे दावाग्निसे पर्वत सन्तप्त हो उठता है। उनके रोनेके साथ हो सारे अन्तःपुरमें हाहाकार मच गया। उन्होंने पितृप्रेमके वश हो उन पलंगके पायोंको छातीसे लगाया। इसके बाद उन्होंने पलंगके पायों और मोतियों को चन्दनादिसे पूजा कर उन्हें जला दिया । ठोक है मोहके वश होकर यह जोव क्या-क्या नहीं करता ? ___ इसमें कोई सन्देह नहीं कि मोहका चक्र जब अच्छे-अच्छे महात्माओंपर भी चल जाता है, तब पूर्णचन्द्रपर उसका प्रभाव पड़ना कोई आश्चर्यका कारण नहीं है। पर पूर्णचन्द्र बुद्धिमान् थे, उन्होंने झटने अपने को सम्हाल लिया और पवित्र श्रावकधर्मको ग्रहण कर बड़ो श्रद्धा और भक्तिके साथ उनका वे पालन करने लगे। फिर आयुके अन्त में वे पवित्र भावोंसे मृत्यु लाभकर महाशुक्र नामक स्वर्गमें देव हुए। उनको माता भो अपनो शक्तिके अनुसार तपश्चर्या कर उसी स्वर्ग में देव हुई। सच है संसार में जन्म लेकर कौन-कौन कालके ग्रास नहीं बने ? मनःपर्ययज्ञानके धारक सिंहचन्द्र मुनि भो तपश्चर्या और निर्मल चारित्रके प्रभावसे मत्यु प्राप्त कर ग्रैवेयकमें जाकर देव हुए।
भारतवर्षके अन्तर्गत सूर्याभपुर नामक एक शहर है। उसके राजाका नाम सुरावर्त है ! वे बड़े बुद्धिमान और तेजस्वी हैं। उनकी महारानोका नाम था यशोधरा। वह बड़ी सुन्दरी थी, बुद्धिमतो थो, सती थो, सरल स्वभाव वाली थी और विदुषो थी। वह सदा दान देती, जिन भगवान्को पूजा करती, और बड़ी श्रद्धाके साथ उपवासादि करती।
सिंहसेन राजाका जीव, जो हाथोकी पर्यायसे मरकर स्वर्ग गया था, यशोधरा रानीका पुत्र हुआ। उसका नाम था रश्मिवेग। कुछ दिनों बाद महाराज सुरावर्त तो राज्यभार रश्मिवेगके लिये सौंपकर साधु बन गये और राज्यकार्य रश्मिवेग चलाने लगा।
एक दिनकी बात है कि धर्मात्मा रश्मिवेग सिद्धकूट जिनालयकी
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