________________
७९
विष्णुकुमार मुनिकी कथा मंत्री बोल उठा कि, हाँ इसकी आप चिन्ता न करें। आप सिंहबलके पकड़ लानेका पुरस्कार राजासे पाना बाकी है, उसकी ऐवज में उससे सात दिनका राज्य ले लेना चाहिये। फिर जैसा हम करेंगे वही होगा। राजाको उसमें दखल देनेका कुछ अधिकार न रहेगा। यह प्रयत्न सबको सर्वोत्तम जान पड़ा। बलि उसी समय राजाके पास पहुँचा और बड़ी विनीततासे बोला-महाराज, आपपर हमारा एक पुरस्कार पाना है। आप कृपाकर अब उसे दीजिये। इस समय उससे हमारा बड़ा उपकार होगा। राजा उसका कूट कपट न समझ और यह विचार कर, कि इन लोगोंने मेरा बड़ा उपकार किया था, अब उसका बदला चुकाना मेरा कर्तव्य है, बोलाबहुत अच्छा, जो तुम्हें चाहिए वह मांग लो, मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके तुम्हारे ऋणसे उऋण होनेका यत्न करूँगा।
बलि बोला-महाराज, यदि आप वास्तवमें ही हमारा हित चाहते हैं, तो कृपा करके सात दिनके लिए अपना राज्य हमें प्रदान कीजिये ।
राजा सुनते ही अवाक् रह गया। उसे किसी बड़े भारी अनर्थको आशंका हुई। पर अब वश ही क्या था ? उसे वचनबद्ध होकर राज्य दे देना ही पड़ा । राज्यके प्राप्त होते ही उनकी प्रसन्नताका कुछ ठिकाना न रहा। उन्होंने मुनियों के मारनेके लिए यज्ञका बहाना बनाकर षड्यंत्र रचा, जिससे कि सर्वसाधारण न समझ सकें।
मुनियोंके बीच में रखकर यज्ञके लिए एक बड़ा भारी मंडप तैयार किया गया। उनके चारों ओर काष्ठ ही काष्ठ रखवा दिया गया । हजारों पशु इकट्ठे किये गये। यज्ञ आरम्भ हुआ । वेदोंके जानकार बड़े-बड़े विद्वान् यज्ञ कराने लगे। वेदध्वनिसे यज्ञमण्डप गंजने लगा। बेचारे निरपराध पश बड़ी निर्दयतासे मारे जाने लगे। उनकी आहुतियाँ दी जाने लगीं। देखते-देखते दुर्गन्धित धुएँसे आकाश परिपूर्ण हुआ। मानो इस महापापको न देख सकनेके कारण सूर्य अस्त हुआ । मनुष्योंके हाथसे राज्य राक्षसोंके हाथोंमें गया। ____सारे मुनिसंघपर भयंकर उपसर्ग हुआ । परन्तु उन शान्तिको मूत्तियोंने इसे अपने किये कर्मोका फल समझकर बड़ी धीरताके साथ सहना आरम्भ किया। वे मेरु समान निश्चल रहकर एक चित्तसे परमात्माका ध्यान करने लगे। सच है-जिन्होंने अपने हृदयको खूब उन्नत और दृढ़ बना लिया है, जिनके हृदय में निरन्तर यह भावना बनी रहती है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org