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वशिष्ठतापसीकी कथा
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जान पड़ता कि होनहार कैसा है ? स्वामी, मुझे बड़ा ही भयंकर दोहला हुआ है। मैं नहीं कह सकती कि अपने यहाँ अबकी बार किस अभागेने जन्म लिया है। नाथ, कहते हुए आत्मग्लानिसे मेरा हृदय फटा पड़ता है । मैं उसे कहकर आपको और अधिक चिन्तामें डालना नहीं चाहती। उग्रसेनको अधिकाधिक आश्चर्य और उत्कण्ठा बढ़ी। उन्होंने बड़े हठके साथ पूछा-आखिर रानीको कहना ही पड़ी। वह बोलो-अच्छा नाथ, यदि आपका आग्रह हो है तो सुनिए, जो कड़ा करके कहती हूँ। मेरी अत्यन्त इच्छा होती है कि "मैं आपका पेट चीरकर खून पान करूँ।" मुझे नहीं जान पड़ता कि ऐसा दुष्ट दोहला क्यों होता है ? भगवान् जाने। यह प्रसिद्ध है कि जैसा गर्भ में बालक आता है, दोहला भी वैसा ही होता है। सुनकर उग्रसेनको भी चिन्ता हुई, पर उसके लिए इलाज क्या था, उन्होंने सोचा, दौहला बुरा या भला, इसका निश्चय होना तो अभी असंभव है। पर उसके अनुसार रानीकी इच्छा तो पूरी होनी ही चाहिए। तब इसके लिए उन्होंने यह युक्ति को कि अपने आकारका एक पुतला बनवाकर उसमें कृत्रिम खून भरवाया और रानीको उसको इच्छा पूरी करनेके लिए उन्होंने कहा । रानोने अपनी इच्छा पूरी करनेके लिए उस पापकर्मको किया । वह सन्तुष्ट हुई ।। ___थोड़े दिनों बाद रेवतीने एक पुत्र जना। वह देखने में बड़ा भयंकर था। उसकी आँखोंसे क्रूरता टपकी पड़ती थी। उग्रसेनने उसके मुंहकी ओर देखा तो वह मुट्री बाँधे बड़ी क्रूर दृष्टिसे उनकी ओर देखने लगा। उन्हें विश्वास हो गया कि जैसे बाँसोंको रगड़से उत्पन्न हुई आग सारे वनको जलाकर खाक कर देती है ठीक इसी तरहसे कुलमें उत्पन्न हुआ दुष्ट पुत्र भी सारे कूलको जड़मलसे उखाड़ फेंक देता है। मुझे इस लड़केकी क्रूरताको देखकर भी यही निश्चय होता है कि अब इस कूलके भी दिन अच्छे नहीं हैं। यद्यपि अच्छा-बुरा होना दैवाधीन है, तथापि मुझे अपने कुलकी रक्षाके निमित्त कुछ न कुछ यत्न करना ही चाहिए । हाथ पर हाथ रखे बैठे रहनेसे काम नहीं चलेगा। यह सोचकर उग्रसेनने एक छोटा-सा सुन्दर सन्दूक मँगवाया और उस बालकको अपने नामको एक अंगूठी पहराकर हिफाजतके साथ उस सन्दूकमें रख दिया। इसके बाद सन्दूकको उन्होंने यमुना नदोमें छुड़वा दिया। सत्र है, दुष्ट किसीको भी प्रिय नहीं लगता।
कौशाम्बो में गंगाभद्र नामका एक माली रहता था। उसको स्त्रोका नाम राजोदरी था। एक दिन वह जल भरनेको नदो पर आई हुई थी।
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