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नागदत्ताको कथा
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की तरह उसी पर दाव खाने लगी। उसने नाराज होकर श्रीकुमारको भो मार डालनेके लिए नन्दको उभारा । नन्द फिर बीमारीका बहाना बनाकर गौएँ चरानेको नहीं आया। तब श्रीकुमार स्वयं ही जानेको तैयार हुआ। उसे जाता देखकर उसकी बहिन श्रीषेगाने उसे रोककर कहा-भैया, तुम मत जाओ। मुझे माताका इसमें कुछ कपट दिखता है । उसने जैसे नन्द द्वारा अपने पिताजीको मरवा डाला है, वह तुम्हें भी मरवा डालनेके लिए दाँत पीस रही है। मुझे जान पड़ता है नन्द इसीलिए बहाना बनाकर आज गौएँ चरानेको नहीं आया। श्रीकुमार बोला-बहिन, तुमने मुझे आज सावधान कर दिया यह बड़ा ही अच्छा किया। तुम मत घबराओ । मैं अपनी रक्षा अच्छी तरह कर सकंगा। अब मझे रंचमात्र भी डर नहीं रहा । और मैं तुम्हारे कहनेसे नहीं भी जाता, पर इससे माताको अधिक सन्देह होता और वह फिर कोई दूसरा ही यत्न मुझे मरवानेका करती। क्योंकि वह चुप तो कभी बैठी ही न रहती । आज बहुत ही अच्छा मौका हाथ लगा है। इसलिए मुझे जाना हो उचित है। और जहाँ तक मेरा बस चलेगा मैं जड़मूलसे उस अंकुरको ही उखाड़कर फैंक दूंगा, जो हमारी माताके अनर्थका मूल कारण है । बहिन, तुम किसी तरहको चिन्ता मनमें न लाओ। अनाथोंका नाथ अपना भी मालिक है।
श्रीकुमार बहिनको समझा कर जंगलमें गौएँ चरानेको गया। उसने वहाँ एक बड़े लकड़ेको वस्त्रोंसे ढककर इस तरह रख दिया कि वह दूसरोंको सोया हुआ मनुष्य जान पड़ने लगे और आप एक ओर छिप गया। श्रोषणाकी बात सच निकली। नन्द नंगो तलवार लिए दबे पाँव उस लकड़ेके पास आया और तलवार उठाकर उसने उस पर दे मारी । इतने में पीछेसे आकर श्रीकुमारने उसकी पीठमें इस जोरको एक भालेको जमाई कि भाला आर-पार हो गया। और नन्द देखते-देखते तड़फड़ाकर मर गया। इधर श्रीकुमार गौओंको लेकर घर लौट आया। आज गोएँ दोहनेके लिए भो श्रीकुमार हो गया। उसे देखकर नागदत्ताने उससे पूछा-क्यों कुमार, नन्द नहीं आया? मैंने तो तेरे ढंढ़ने के लिए उसे जंगलमें भेजा था। क्या तुने उसे देखा है कि वह कहाँ पर है ? श्रीकुमार से तब न रहा गया और गुस्से में आकर उसने कह डाला-माता, मुझे तो मालूम नहीं कि नन्द कहाँ है। पर मेरा यह भाला अवश्य जानता है। नागदत्ताको आँखें जैसे हो उस खूनसे भरे हुए भाले पर पड़ी तो उसकी छाती धड़क उठी। उसने समझ लिया कि इसने उसे मार डाला है । अब
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