________________
२५४
आराधना कथाकोश लक्ष्मी दें, जो भव्य-जनोंका उद्धार करनेवाले हैं, केवलज्ञानरूपी अपूर्व नेत्रके धारक हैं, देवों, विद्याधरों और बड़े-बड़े राजों-महाराजोंसे पूज्य हैं, संसारका हित करनेवाले हैं, बड़े धीर हैं, और अनेक प्रकारका उत्तमसे उत्तम सुख देनेवाले हैं।
५६. परशुरामकी कथा संसार-समुद्रसे पार करनेवाले जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर परशुरामका चरित्र लिखा जाता है जिसे सुनकर आश्चर्य होता है ।
अयोध्याका राजा कार्तवीर्य अत्यन्त मूर्ख था। उसको रानोका नाम पद्मावती था । अयोध्याके जंगल में यमदग्नि नामके एक तपस्वीका आश्रम था । इस तपस्वीकी स्त्रीका नाम रेणुका था। इसके दो लड़के थे । इसमें एकका नाम श्वेतराम था और दूसरेका महेन्द्रराम । एक दिनकी बात है कि रेणुकाके भाई वरदत्त मुनि उस ओर आ निकले। वे एक वृक्षके नीचे ठहरे। उन्हें देखकर रेणुका बड़े प्रेमसे उनसे मिलनेको आई और उनके हाथ जोड़कर वहीं बैठ गई । बुद्धिमान् वरदत्त मुनिने उससे कहा-बहिन, मैं तुझे कुछ धर्मका उपदेश सुनाता हूँ। तू उसे जरा सावधानोसे सुन । देख, सब जीव सुखको चाहते हैं, पर सच्चे सुखके प्राप्त करनेकी कोई बिरला ही खोज करता है और इसीलिये प्रायः लोग दुखी देखे जाते हैं। सच्चे सुखका कारण पवित्र सम्यग्दर्शनका ग्रहण करना है। जो पुरुष सम्यक्त्व प्राप्त कर लेते हैं, वे दुर्गतियोंमें फिर नहीं भटकते। संसारका भ्रमण भी उनका कम हो जाता है। उनमें कितने तो उसी भवसे मोक्ष चले जाते हैं । सम्यक्त्वका साधारण स्वरूप यह है कि सच्चे देव, सच्चे गुरु और सच्चे शास्त्र पर विश्वास लाना। सच्चे देव वे हैं, जो भूख और प्यास, राग और द्वेष, क्रोध और लोभ, मान और माया आदि अठारह दोषोंसे रहित हों, जिनका ज्ञान इतना बढ़ा-चढ़ा हो कि उससे संसारका कोई पदार्थ अजाना न रह गया हो, जिन्हें स्वर्गके देव, विद्याधर, चक्रवर्ती और बड़े-बड़े राजे-महाराजे भी पूजते हों, और जिनका उपदेश किया पवित्र धर्म इस लोकमें और परलोकमें भी सुखका देनेवाला हो तथा जिस पवित्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org