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भावानुराग-कथा
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३६७ १०१. भावानुराग-कथा सब प्रकार सुखके देनेवाले जिनभगवान्को नमस्कार कर धर्म में प्रेम करनेवाले नागदत्तकी कथा लिखी जाती है।
उज्जैनके राजा धर्मपाल थे। उनकी रानोका नाम धर्मश्री था। धर्मश्री धर्मात्मा और बड़ी उदार प्रकृतिकी स्त्री थी। यहाँ एक सागरदत्त नामका सेठ रहता था। इसकी स्त्रीका नाम सुभद्रा था। सुभद्राके नागदत्त नामका एक लड़का था । नागदत्त भी अपनी माताकी तरह धर्मप्रेमी था। धर्म पर उसकी अचल श्रद्धा थी। इसका ब्याह समुद्रदत्त सेठकी सुन्दर कन्या प्रियंगुश्रीके साथ बड़े ठाटबाटसे हुआ। ब्याहमें खूब दान दिया गया । पूजा उत्सव किया गया । दीन-दुखियोंकी अच्छी सहायता की गई।
प्रियंगुश्रीको इसके मामाका लड़का नागसेन चाहता था और सागरदत्तने उसका ब्याह कर दिया नागदत्तके साथ । इससे नागसेनको बड़ा ना-गवार मालूम हुआ। सो उसने बेचारे नागदत्तके साथ शत्रुता बाँध ली और उसे कष्ट देनेका मौका हूँढने लगा। ___ एक दिन उपासा नागदत्त धर्मप्रेमसे जिन मन्दिरमें कायोत्सर्ग ध्यान कर रहा था। उसे नागसेनने देख लिया। सो इस दुष्टने अपनी शत्रुताका बदला लेनेके लिये एक षड़यन्त्र रचा। गले मेंसे अपना हार निकाल कर उसे इसने नागदत्तके पांवोंके पास रख दिया और हल्ला कर दिया कि यह मेरा हार चुराकर लिये जा रहा था, सौ मैंने इसके पोछे दौड़कर इसे पकड़ लिया । अब ढोंग बनाकर ध्यान करने लग गया, जिससे यह पकड़ा न जाय । नागसेनका हल्ला सुनकर आसपासके बहुतसे लोग इकठे हो गए और पुलिस भी आ जमा हुई। नागदत्त पकड़ा जाकर राज- । दरबारमें उपस्थित किया गया । राजाने नागदत्तकी ओरसे कोई प्रमाण न पाकर उसे मारनेका हुक्म दे दिया। नागदत्त उसो समय बध्य-भूमिमें ले जाया गया। उसका सिर काटनेके लिये तलवारका जो बार उस पर किया गया, क्या आश्चर्य कि वह बार उसे ऐसा जान पड़ा मानों किसोने उस पर फूलोंकी माला फैकी हो। उसे जरा भी चोट न पहुंची और इसी समय आकाशसे उस पर फूलोंकी वर्षा हुई। जय जय, धन्य धन्य, शब्दोंसे आकाश गूंज उठा । यह आश्चर्य देखकर सब लोग दंग रह गए। सच है, धर्मानुरागसे सत्पुरुषोंका, सहनशील महात्माओंका कौन उपकार नहीं करता। इस प्रकार जैनधर्मका सुखमय प्रभाव देखकर नागदत्त और
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