Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 440
________________ अभयदानको कथा ४२५ साधु-सन्त अच्छे नहीं लगते, जैने उल्लूको सूर्य । धर्मिलने मुनिको निकाल 'दिया, उनका अपमान किया, पर मुनिने इसका कुछ बुरा न माना । वे जैसे शान्त थे वैसे ही रहे । धर्मशालासे निकल कर वे एक वृक्ष के नीचे आकर ठहर गये । रात इन्होंने वहीं पूरी को । डांस, मच्छर वगैरहका इन्हें बहुत कष्ट सहना पड़ा। इन्होंने सब सहा और बड़ी शान्तिमे सहा । सच है, जिनका शरीरसे रत्तीभर मोह नहीं उनके लिए तो कष्ट कोई चीज ही नहीं । सबेरे जब देविल मुनिके दर्शन करनेको आया और उन्हें धर्मशाला में न देखकर एक वृक्ष के नीचे बैठे देखा तो उसे धर्म की इस दुष्टता पर बड़ा क्रोध आया । धर्मिलका सामना होने पर उसने उसे फटकारा | देविलकी फटकार धर्मिल न सह सका और बात बहुत बढ़ गई । यहाँ तक कि परस्पर में मारामारी हो गई। दोनों हो परस्पर में लड़कर मर मिटे । क्रूर भावोंसे मरकर ये दोनों क्रमसे सूअर और व्याघ्र हुए। देविका जीव सूअर विंध्य पर्वतकी गुहा में रहता था। एक दिन कर्मयोगसे गुप्त और त्रिगुप्तिगुप्त नामके दो मुनिराज अपने विहारने पृथिवीको पवित्र करते इसी गुहामें आकर ठहरे। उन्हें देखकर इस सूअर को जातिस्मरण हो गया । इसने उपदेश करते हुए मुनिराज द्वारा धर्मका उपदेश सुन कुछ व्रत ग्रहण किये । व्रत ग्रहण कर यह बहुत सन्तुष्ट हुआ 1 इसी समय मनुष्यों की गन्ध पाकर धर्मिलका जीव व्याघ्र मुनियोंको खाने के लिए झपटा हुआ आया । सूअर उसे दूर हीसे देखकर गुहा के द्वार पर आकर डट गया । इसलिए कि वह भीतर बैठे हुए मुनियोंकी रक्षा कर सके । व्याघ्र गुहाके भीतर घुसनेके लिए सूअर पर बड़ा जोरका आक्रमग किया । सूअर पहलेसे ही तैयार बैठा था । दोनोंके भावों में बड़ा अन्तर था । एकके भाव थे मुनिरक्षा करनेके और दूसरेके उनको खा जाने के । इसलिए देविका जीव सूअर तो मुनिरक्षा रूप पवित्र भावोंसे मर कर सौधर्म स्वर्ग में अनेक ऋद्धियों का धारी देव हुआ। जिसके शरीरको चमकती हुई कान्ति गाढ़ेसे गाढ़े अन्धकारको नाश करनेवाली है, जिसकी रूपसुन्दरता लोगों के मनको देखने मात्रसे मोह लेती है, जो स्वर्गीय दिव्य वस्त्रों और मुकुट, कुण्डल, हार आदि बहुमूल्य भूषणों को पहरता है, अपनी स्वभाव-सुन्दरतासे जो कल्पवृक्षों को नोचा दिखाता है, जो अणिनादि ऋद्धि-सिद्धियों का धारक है, अवधिज्ञानी है, पुण्यके उदयसे जिसे सब दिव् सुख प्राप्त हैं, अनेक सुन्दर-सुन्दर देव कन्याएँ और देवगग जिसको सेवा में सदा उपस्थित रहते हैं, जो महा वैभवशाली है, महा सुखी है, स्वर्गोके देवों द्वारा जिनके चरण पूजे जाते हैं ऐसे जिन भगवान्की, जिन प्रतिमाओं की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472