Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 459
________________ ११४. जिनपूजन - प्रभाव - कथा संसार द्वारा पूजे जानेवाले जिनभगवान्को, सर्वश्रेष्ठ गिनी जानेवाली जिनवानीको और राग, द्वेष, मोह, माया आदि दोषोंसे रहित परम वीतरागी साधुओं को नमस्कार कर जिनपूजा द्वारा फल प्राप्त करनेवाले एक मेंढकी कथा लिखी जाती है । शास्त्रोंमें उल्लेख किये उदाहरणों द्वारा यह बात खुलासा देखने में आती है कि जिन भगवान्‌की पूजा पापोंकी नाश करनेवाली और स्वर्ग मोक्षके सुखोंकी देनेवाली है । इसलिए जो भव्यजन पवित्र भावों द्वारा धर्मवृद्धि अर्थ जिनपूजा करते हैं वे ही सच्चे सम्यग्दृष्टि हैं और मोक्ष जानेके अधिकारी हैं । इसके विपरीत पूजा की जो निन्दा करते हैं वे पापी हैं और संसार में निन्दाके पात्र हैं । ऐसे लोग सदा दुःख, दरिद्रता, रोग, शोक आदि कष्टोंको भोगते हैं और अन्तमें दुर्गतिमें जाते हैं । अतएव भव्यजनों को उचित है कि वे जिन भगवान्‌का अभिषेक, पूजन, स्तुति, ध्यान आदि सत्कर्मोंको सदा किया करें। इसके सिवा तीर्थयात्रा, प्रतिष्ठा, जिन मन्दिरोंका जीर्णोद्धार आदि द्वारा जैनधर्मकी प्रभावना करना चाहिए। इन पूजा प्रभावना आदि कारणोंसे सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है । जिन भगवान् इंद्र, धरणेन्द्र, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि सभी महापुरुषों द्वारा पूज्य हैं । इसलिए उनकी पूजा तो करनी ही चाहिए। जिनपूजा द्वारा सभी उत्तम उत्तम सुख मिलते हैं। जिनपूजा करना महापुण्यका कारण है, ऐसा शास्त्रों में जगह-जगह लिखा मिलता है । इसलिए जिनपूजा समान दूसरा पुण्यका कारण संसारमें न तो हुआ और न होगा । प्राचीन काल में भरत जैसे अनेक बड़े-बड़े पुरुषोंने जिनपूजा द्वारा जो फल प्राप्त किया है, किसकी शक्ति है जो उसे लिख सके । गन्धपुष्पादि आठ द्रव्योंसे पूजा करनेवाले जिनपूजा द्वारा जो फल लाभ करते हैं, उनके सम्बन्ध में हम क्या लिखें, जब कि केवल एक ना कुछ चीज फूलसे पूजाकर एक मेंढकने स्वर्ग सुख प्राप्त किया । समन्तभद्र स्वामीने भी इस विषय में लिखा है - राजगृहमें हर्षसे उन्मत्त हुए एक मेंढकने सत्पुरुषों को यह स्पष्ट बतला दिया कि केवल एक फूल द्वारा भी जिन भगवान्की पूजा करनेसे उत्तम फल प्राप्त होता है, जैसा कि मैंने प्राप्त किया । अब मेंढककी कथा सुनिए -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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