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आराधना कथाकोश
आया, एक मेंढक हुआ। इसलिये भव्य-जनोंको उचित है कि वे संकट समय भी पाप न करें।
एक दिन भवदत्ता इस बावड़ी पर जल भरनेको आई । उसे देखकर मेंढकको जातिस्मरण ज्ञान हो गया। वह उछल कर भवदत्ताके वस्त्रों पर चढ़ने लगा। भवदत्ताने डरकर उसे कपड़ों परसे झिड़क दिया। मेंढक फिर भी उछल-उछलकर उसके वस्त्रों पर चढ़ने लगा। उसे बार-बार अपने पास आता देखकर भवदत्ता बड़ी चकित हुई और डरी भी। पर इतना
उसे भी विश्वास हो गया कि इस मेंढकका और मेरा पूर्वजन्मका कुछ न · कुछ सम्बन्ध होना ही चाहिये । अन्यथा बार-बार मेरे झिड़क देने पर भी यह मेरे पास आनेका साहस न करता । जो हो, मौका पाकर कभी किसी साधु-सन्तसे इसका यथार्थ कारण पूछंगी। ___ भाग्यसे एक दिन अवधिज्ञानी सुव्रत मुनिराज राजगृहमें आकर ठहरे। भवदत्ताको मेंढकका हाल जाननेकी बड़ी उत्कण्ठा थी। इसलिये वह तुरन्त उनके पास गई। उनसे प्रार्थना कर उसने मेंढकका हाल जाननेकी इच्छा प्रगट की। सुव्रत मुनिराजने तब उससे कहा-जिसका तू हाल पूछनेको आई है, वह दूसरा कोई न होकर तेरा पति नागदत्त है। वह बड़ा मायाचारी था, इसलिये मर कर मायाके पापसे यह मेंढक हुआ है । उन मुनिके संसार-पार करने वाले वचनोंको सुनकर भवदत्ताको सन्तोष हुआ। वह मुनिको नमस्कार कर घर पर आ गई। उसने फिर मोहवश हो उस मेंढकको भी आने यहाँ ला रक्खा । मेंढक वहाँ आकर बहुत प्रसन्न रहा। ___ इसी अवसरमें वैभार पर्वत पर महावीर भगवान्का समवसरण आया। वनमालोने आकर श्रेणिकको खबर दी कि राजराजेश्वर, जिनके चरणोंको इन्द्र, नागेन्द्र, चक्रवर्ती, विद्याधर आदि प्रायः सभी महापुरुष पूजा-स्तुति करते हैं, वे महावीर भगवान् वैभार पर्वत पर पधारे हैं। भगवान्के आनेके आनन्द-समाचार सुनकर श्रेणिक बहुत प्रसन्न हुए। भक्तिवश हो सिंहासनसे उठकर उन्होंने भगवान्को परोक्ष नमस्कार किया। इसके बाद इन शुभ समाचारोंकी सारे शहरमें सबको खबर हो जाय, इसके लिये उन्होंने आनन्द घोषणा दिलवा दी। बड़े भारी लावलश्कर और वैभवके साथ भव्यजनोंको संग लिये वे भगवान्के दर्शनोंको गये। वे दूरसे उन संसारका हित करनेवाले भगवान्के समवसरणको देखकर उतने ही खुश हुए जितने खुश मोर मेघोंको देखकर होते हैं और
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