Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 460
________________ जिनपूजन प्रभाव - कथा यह भारतवर्ष जम्बूद्वीप के मेरुकी दक्षिण दिशा में है । इसमें अनेक तोर्थंकरों का जन्म हुआ है । इसलिए यह महान् पवित्र है । मगध भारतवर्षमें एक प्रसिद्ध और धनशाली देश है । सारे संसारकी लक्ष्मी जैसे यहीं आकर इकट्ठी हो गई हो । यहाँके निवासो प्रायः धनी हैं, धर्मात्मा हैं, उदार हैं और परोपकारी हैं । जिस समयकी यह कथा है उस समय मगधकी राजधानी राजगृह एक बहुत सुन्दर शहर था । सब प्रकारकी उत्तमसे उत्तम भोगोपभोगकी वस्तुएँ वहाँ बड़ी सुलभता से प्राप्त थीं । विद्वानोंका उसमें निवास था । वहाँके पुरुष देवोंसे और स्त्रियाँ देवबालाओंसे कहीं बढ़कर सुन्दर थीं । स्त्री-पुरुष प्रायः सब ही सम्यक्त्वरूपी भूषणसे अपनेको सिंगारे हुए थे । और इसीलिये राजगृह उस समय मध्यलोकका स्वर्ग कहा जाता था । वहाँ जैनधर्मका ही अधिक प्रचार था । उसे प्राप्त कर सब सुख-शान्ति लाभ करते थे । राजगृहके राजा तब श्रेणिक थे । श्रेणिक धर्मज्ञ थे । जैनधर्म और जैनतत्त्व पर उनका पूर्ण विश्वास था । भगवान्की भक्ति उन्हें उतनी ही प्रिय थी, जितनी कि भौंरेको कमलिनी । उनका प्रताप शत्रुओंके लिये मानों धधकती आग थी । सत्पुरुषोंके लिये वे शोतल चन्द्रमा थे। पिता अपनी सन्तानको जिस प्यारसे पालता है श्रेणिकका प्यार भी प्रजा पर वैसा ही था । श्रेणिकको कई रानियाँ थीं । चेलिनी उन सबमें उन्हें अधिक प्रिय थी । सुन्दरतामें, गुणोंमें चतुरता में चेलिनीका आसन सबसे ऊँचा था । उसे जैनधर्मसे, भगवान् की पूजा- प्रभावनासे बहुत ही प्रेम था । कृत्रिम भूषणों द्वारा सिंगार करनेका महत्त्व न देकरं उसने अपने आत्माको अनमोल सम्यग्दर्शन रूप भूषणसे भूषित किया था। जिनवाणी सब प्रकार के ज्ञानविज्ञानसे परिपूर्ण है और अतएव वह सुन्दर है, चेलिनी में भी किसी प्रकार के ज्ञान-विज्ञानकी कमी न थो। इसलिये उसकी रूपसुन्दरताने और अधिक सौन्दर्य प्राप्त कर लिया था । 'सोने में सुगन्ध' को उक्ति उस पर चरितार्थं थी । राजगृह होमें एक नागदत्त नामका सेठ रहता था । यह जैनी न था । इसकी स्त्रीका नाम भवदत्ता था । नागदत्त बड़ा मायाचारी था । सदा मायाके जाल में यह फँसा हुआ रहता था। इस मायाचारके पापसे मरकर यह अपने घर आँगनकी बावड़ी में मेंढक हुआ । नागदत्त यदि चाहता तो कर्मोंका नाश कर मोक्ष जाता, पर पाप कर वह मनुष्य पर्यायसे पशुजन्म में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472