Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 448
________________ ४३३ करकण्डु राजाको कथा था। ठीक है, कोई-कोई साधारण पुरुष भी बड़े सज्जन होते हैं। इसे सरल और सज्जन होने पर भी इसको स्त्री बड़ी कर्कशा थी। उसे दूसरे आदमीका अपने घर रहना अच्छा ही न लगता था। कोई अपने घर में पाहुना आया कि उस पर सदा मुह चढ़ाये रहना, उससे बोलना-चालना नहीं, आदि उसके बुरे स्वभावको खास बातें थीं। पद्मावतीके साथ भी इसका यहो बर्ताव रहा। एक दिन भाग्यसे वह माली किसी कामके लिये दूसरे गाँव चला गया । पोछेसे इसकी स्त्रोकी बन बड़ो । उसने पद्मावतीको गाली-गलौज देकर और बुरा भला कह घरसे बाहर निकाल दिया। बेचारी पद्मावती अपने कर्मोंको कोसती यहाँसे चल दो। वह एक घोर मसानमें पहँची। प्रसूतिके दिन आ लगे थे। इस पर चिन्ता और दुःखके मारे इसे चैन नहीं था। इसने यहीं पर एक पुण्यवान् पुत्र जता। उसके हाथ, पाँव, ललाट वगैरहमें ऐसे सब चिह्न थे, जो बड़ेसे बड़े पुरुषके होने चाहिये। जो हो, इस समय तो उसलो दशा एक भिखारीसे भी बढ़कर थी । पर भाग्य कहीं छुपा नहीं रहता। पुण्यवान् महात्मा पुरुष कहीं हो, कैसी अवस्थामें हो, पुण्य वहीं पहुँच कर उसकी सेवा करता है। पर होना चाहिये पास में पूण्य । पुण्य बिना संसार में जन्म निस्सार है। जिस समय पद्मावतीने पुत्र जना उसी समय पुत्रके पुण्यका भेजा हुआ एक मनुष्य चाण्डालके वेषमें मसानमें पद्मावतीके पास आया और उसे विनयसे सिर झकाकर बोला-माँ, अब चिन्ता न करो। तुम्हारे लड़केका दास आ गया है। वह इसकी सब तरह जी-जानसे रक्षा करेगा। किसी तरहका कोई कष्ट इसे न होने देगा । जहाँ इस बच्चेका पसीना गिरेगा वहाँ यह अपना खून गिरावेगा। आप मेरी मालकिन हैं। सब भार मुझ पर छोड़ आप निश्चिन्त होइये । पद्मावतीने ऐसे कष्टके समय पुत्रको रक्षा करनेवालेको पाकर अपने भाग्यको सराहा, पर फिर भी अपना सब सन्देह दूर हो, इसलिये उससे कहा-भाई, तुमने ऐसे निराधार समयमें आकर मेरा जो उपकार करना विचारा है, तुम्हारे इस ऋणसे मैं कभी मुक्त नहीं हो सकती। मझे तुमसे दयावानोंका अत्यन्त उपकार मानना चाहिये । अस्तू, इस समय सिवा इसके मैं और क्या अधिक कह सकती हूँ कि जैसा तुमने मेरा भला किया, वैसा भगवान् तुम्हारा भी भला करे। भाई, मेरी इच्छा तुम्हारा विशेष परिचय पाने की है। इसलिये कि तुम्हारा पहरावा और तुम्हारे चेहरे परकी तेजस्विता देखकर मुझे बड़ा ही सन्देह हो रहा है । अतएव यदि तुम मुझसे अपना परिचय देनेमें कोई हानि न समझो तो कृपा कर कहो। वह आगत पुरुष पद्मावतीसे बोला-माँ, मुझ आभागेको कथा २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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