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आराधना कथाकोश
जिसे किसीने वसुपालको भेंट किया था, चढ़कर बड़े ठाटबाटसे नौकरचाकरोंको साथ लिये शहर बाहर हुए । पद्मावतीका यह दोहला सचमुच ही बड़ा ही आश्चर्यजनक था । जो हो, जब ये शहर बाहर होकर थोड़ी ही दूर गये होंगे कि कर्मयोगसे हाथी उन्मत्त हो गया । अंकुश वगैरहकी वह कुछ परवाह न कर आगे चलनेवाले लोगोंकी भीड़को चीरता हुआ भाग निकला । रास्ते में एक घने वृक्षोंकी वनीमें होकर वह भागा जा रहा था । सोदन्तिवाहनको उस समय कुछ ऐसी बुद्धि सूझ गई, कि जिससे वे एक वृक्षकी डालीको पकड़ कर लटक गये । हाथी आगे भागा ही चला गया । सच है, पुण्य कष्ट समयमें जीवोंकी बचा लेता है । बेचारे दन्तिवाहन उदास मुँह और रोते-रोते अपनी राजधानी में आये। उन्हें इस बातका अत्यन्त दुःख हुआ कि गर्भिणी प्रियाकी न जाने क्या दशा हुई. होगी । दन्तिवाहनकी यह दशा देखकर समझदार लोगोंने समझा-बुझाकर उन्हें शान्त किया । इसमें कोई सन्देह नहीं कि सत्पुरुषोंके वचन चन्दनसे कहीं बढ़कर शीतल होते हैं और उनके द्वारा दुखियोंके हृदयका दुःख सन्ताप बहुत जल्दी ठण्डा पड़ जाता है ।
उधर हाथी पद्मावतीको लिये भागा ही चला गया । अनेक जंगलों और गाँवोंको लाँघकर वह एक तालाब पर पहुँचा । वह बहुत थक गया था । इसलिये थकावट मिटानेको वह सोधा उस तालाब में घुस गया । पद्मावती सहित तालाब में उसे घुसता देख जलदेवीने झटसे पद्मावतीको हाथी पर से उतार कर तालाब के किनारे पर रख दिया । आफतकी मारी बेचारी पद्मावती किनारे पर बैठी-बैठी रोने लगी । वह क्या करे, कहाँ जाय, इस विषय में उसका चित्त बिलकुल धीर न धरता था । सिवा रोनेके उसे कुछ न सूझता था । इसी समय एक माली इस ओर होकर अपने घर जा रहा था । उसने इसे रोते हुए देखा । इसके वेष-भूषा ओर चेहरेके रंग-ढंग से इसे किसी उच्च घरानेकी समझ उसे इस पर बड़ो दया आई । उसने इसके पास आकर कहा - बहिन, जान पड़ता है तुम पर कोई भारी दुःख आकर पड़ा है। यदि तुम कोई हर्ज न समझो तो मेरे घर चलो । तुम्हें वहाँ कोई कष्ट न होगा । मेरा घर यहाँसे थोड़ी ही दूर पर हस्तिनापुरमें है और मैं जातिका माली हूँ । पद्मावती उसे दयावान् देख उसके साथ होली । इसके सिवा उसके लिये दूसरी गति भी न थी । उस मालीने पद्मावती को अपने घर ले जाकर बड़े आदर सत्कार के साथ रक्खा । वह. उसे अपनी बहिन के बराबर समझता था । इसका स्वभाव बहुत अच्छा
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