Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 441
________________ आराधना कथाकाश और कृत्रिम तथा अकृत्रिम जिन मन्दिरोंकी जो सदा भक्ति और प्रेमसे पूजा करता है, दुर्गतिके दुःखोंको नाश करनेवाले तीर्थोंकी यात्रा करता है, महामुनियोंकी भक्ति करता है और धर्मात्माओंके साथ वात्सल्यभाव रखता है। ऐसी उसकी सुखमय स्थिति है । जिस प्रकार यह सूअर धर्मके प्रभावसे उक्त प्रकार सुखका भोगनेवाला हुआ उसी प्रकार जो और भव्यजन इस पवित्र धर्मका पालन करेंगे वे भी उसके प्रभावसे सब सुख-सम्पत्ति लाभ करेंगे। समझिए, संसारमें जो-जो धनदौलत, स्त्री, पुत्र, सुख, ऐश्वर्य आदि अच्छी-अच्छी आनन्द भोगकी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं, उनका कारण एक मात्र धर्म है। इसलिए सुखकी चाह करनेवाले भव्यजनोंको जिन-पूजा, पात्र-दान, व्रत, उपवास, शील, संयम आदि धर्मका निरन्तर पवित्र भावोंसे सेवन करना चाहिए। देविल तो पुण्यके प्रभावसे स्वर्ग गया और धमिलने मुनियोंको खा जाना चाहा था, इसलिए वह पापके फलसे मरकर नरक गया । इस प्रकार पुण्य और पापका फल जानकर भव्यजनोंको उचित है कि वे पुण्यके कारण पवित्र जैनधर्ममें अपनी बुद्धिको दृढ़ करें । इस प्रकार परम सुख-मोक्षके कारण, पापोंका नाश करनेवाले और पात्र-भेदसे विशेष आदर योग्य इस पवित्र अभयदानकी कथा अन्य जैन शास्त्रों के अनुसार संक्षेपमें यहाँ लिखी गई। यह सत्कथा संसारमें प्रसिद्ध होकर सबका हित करे। ११३. करकण्डु राजाकी कथा संसार द्वारा पूजे जानेवाले जिन भगवान्को नमस्कार कर करकण्डु राजाका सुखमय पवित्र चरित लिखा जाता है । जिसने पहले केवल एक कमलसे जिन भगवान्की पूजा कर जो महान् फल प्राप्त किया, उसका चरित जैसा और ग्रन्थोंमें पुराने ऋषियोंने लिखा है उसे देखकर या उनकी कृपासे उसका थोड़ेमें मैं सार लिखता हूँ। ___ नील और महानील तेरपुरके राजा थे । तेरपुर कुन्तल देशकी राजधानी थी। यहां वसुमित्र नामका एक जिनभक्त सेठ रहता था। सेठानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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