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आराधना कथाकोश
बड़े विनयके साथ धर्मका स्वरूप पूछा- तब ऋजुमति मुनिने उसे इस प्रकार संक्षेप में धर्मका स्वरूप कहा
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प्रीतिकर, धर्म उसे कहते हैं जो संसारके दुःखोंसे रक्षाकर उत्तम सुख प्राप्त करा सके । ऐसे धर्मके दो भेद हैं। एक मुनिधर्म और दूसरा गृहस्थधर्म | मुनियोंका धर्म सर्व त्याग रूप होता है । सांसारिक माया-ममता से उसका कुछ सम्बन्ध नहीं रहता । और वह उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव आदि दस आत्मिक शक्तियोंसे युक्त होता है। गृहस्थधर्म में संसार के साथ लगाव रहता है । घर में रहते हुए धर्मका पालन करना पड़ता है । मुनिधर्म उन लोगोंके लिये है जिनका आत्मा पूर्ण बलवान् है, जिनमें कष्टों के सहने की पूरी शक्ति है और गृहस्थ धर्म मुनिधर्मके प्राप्त करनेकी सीढ़ी है । जिस प्रकार एक साथ सौ-पचास सीढ़ियाँ नहीं चढ़ी जा सकतीं उसी प्रकार साधारण लोगों में इतनी शक्ति नहीं होती कि वे एकदम मुनिधर्म ग्रहण कर सकें । उसके अभ्यासके लिये वे क्रम-क्रमसे आगे बढ़ते जांय, इसलिये पहले उन्हें गृहस्थधर्मका पालन करना पड़ता है। मुनिधर्म और गृहस्थधर्म में सबसे बड़ा भेद यह है कि, पहला साक्षात् मोक्षका कारण है और दूसरा परम्परासे । श्रावकधर्मका मूल कारण है- सम्यग्दर्शनका पालन | यही मोक्ष - सुखका बीज है । बिना इसके प्राप्त किये ज्ञान, चारित्र वगैरहकी कुछ कीमत नहीं । इस सम्यग्दर्शनको आठ अंगों सहित पालना चाहिये । सम्यक्त्व पालने के पहले मिथ्यात्व छोड़ा जाता है । क्योंकि मिथ्यात्व ही आत्माका एक ऐसा प्रबल शत्रु है जो संसार में इसे अनन्त काल तक भटकाये रहता है और कुगतियों के असह दुःखोंको प्राप्त कराता है । मिथ्यात्वका संक्षिप्त लक्षण है - जिन भगवान् के उपदेश किये तत्व या धर्मसे उलटा चलना और यही धर्मसे उलटापन दुःखका कारण है । इसलिये उन पुरुषोंको, जो सुख चाहते हैं, मिथ्यात्वके परित्याग पूर्वक शास्त्राभ्यास द्वारा अपनी बुद्धिको काँचके समान निर्मल बनानी चाहिये । इसके सिवा श्रावकों को मद्य, मांस और मधु (शहद) का त्याग करना चाहिये । क्योंकि इनके खाने से जीवोंको नरकादि दुर्गतियों में दुःख भोगना पड़ते हैं | श्रावकों के पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ऐसे बारह व्रत हैं, उन्हें धारण करना चाहिए । रातके भोजनका, चमड़ेमें रखे हुये हींग, जल, घी, तेल आदिका तथा कन्दमूल, आचार और मक्खनका श्रावकों को खाना उचित नहीं । इनके खानेसे मांस त्याग व्रतमें दोष आता है। जुआ खेलना, चोरी करना, परस्त्री सेवन, वेश्या सेवन, शिकार करना, मांस खाना, मदिरा पोना, ये सात व्यसन - दुःखों को देनेवाली
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