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औषधिदानकी कथा
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रहते हैं । अन्त में स्वाभाविक सरल भावोंसे मृत्यु लाभ कर ये दानी महात्मा कुछ बाकी बचे पुण्य फलसे स्वर्ग में जाते हैं । श्रीषेणने भी भोगभूमिका खूब सुख भोगा । अन्तमें वे स्वर्ग में गये । स्वर्ग में भी मनचाहा दिव्य सुख भोगकर अन्त में वे मनुष्य हुए। इस जन्ममें ये कई बार अच्छेअच्छे राजघराने में उत्पन्न हुए । पुण्नसे फिर स्वर्ग गये । वहाँको आयु पूरी कर अबकी बार भारतवर्ष के सुप्रसिद्ध शहर हस्तिनापुरके राजा विश्वसेन की रानी ऐराके यहाँ इन्होंने अवतार लिया । यही सोलहवें श्री शान्तिनाथ तीर्थंकर के नामसे संसारमें प्रख्यात हुए । इनके जन्म समयमें स्वर्ग के देवोंने आकर बड़ा उत्सव किया था, इन्हें सुमेरु पर्वत पर ले जाकर क्षीरसमुद्र के स्फटिकसे पवित्र और निर्मल जलसे इनका अभिषेक किया था । भगवान् शान्तिनाथने अपना जीवन बड़ी ही पवित्रता के साथ बिताया। उनका जीवन संसारका आदर्श जीवन है । अन्तमें योगी हो इन्होंने धर्मका पवित्र उपदेश देकर अनेक जनोंको संसारसे पार किया, -दुःखों से उनकी रक्षा कर उन्हें सुखी किया । अपना संसारके प्रति जो कर्त्तव्य था उसे पूरा कर इन्होंने निर्वाण लाभ किया। यह सब पात्रदानका फल है । इसलिये जो लोग पात्रों को भक्तिसे दान देंगे वे भी नियमसे ऐसा ही उच्च सुख लाभ करेंगे। यह बात ध्यान में रखकर सत्पुरुषों का कर्त्तव्य है, कि वे प्रतिदिन कुछ न कुछ दान अवश्य करें। यही दान स्वर्ग और मोक्ष सुखका देनेवाला है ।
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मूलसंघ में कुन्दकुन्दाचार्यकी परम्परा में श्रीमल्लिभूषण भट्टारक हुए रत्नत्रय - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के धारी थे । इन्हीं गुरु महाराज की कृपासे मुझ अल्पबुद्धि नेमिदत्त ब्रह्मवारीने पात्रदान के सम्बन्धमें श्राशान्तिनाथ भगवान्को पवित्र कथा लिखो है । यह कथा मेरे परम शान्तिकी कारण हो ।
११०. औषधिदानकी कथा
जिन भगवान्, जिनवाणी और जैन साधुओंके चरणों को नमस्कार कर अधिदान के सम्बन्धको कथा लिखी जाती है ।
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