Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 437
________________ आराधना कथाकोश एक दिन इसने उन्हीं पद्मनन्दि मुनिको देखा, जिन्हें कि इसने गोविन्द ग्वालके भव में पुस्तक भेंट की थी । उन्हें देखकर इसे जातिस्मरणज्ञान हो गया । मुनिको नमस्कार कर तब धर्मप्रेमसे इसने उनसे दोक्षा ग्रहण कर ली । इसकी प्रसन्नता का कुछ पार न रहा । यह बड़े उछाह से तपस्या करने लगा । दिनों-दिन इसके हृदयकी पवित्रता बढ़ती ही गई । आयुके अन्त में शान्तिसे मृत्यु लाभ कर यह पुण्यके उदयसे कौण्डेश नामका राजा हुआ | कौण्डेश बड़ा वीर था । तेज में वह सूर्यसे टक्कर लेता था । सुन्दरता उसकी इतनी बढ़ी चढ़ी थी कि उसे देखकर कामदेवको भो नोचा मुँह कर लेना पड़ता था । उसकी स्वभाव-सिद्ध कान्तिको देखकर तो लज्जाके मारे बेचारे चन्द्रमाका हृदय हो काला पड़ गया । शत्रु उसका नाम सुनकर काँपते थे । वह बड़ा ऐश्वर्यवान् था, भाग्यशाली था, यशस्वी था और सच्चा धर्मज्ञ था । वह अपनी प्रजाका शासन प्रेम और नीति के साथ करता था । अपनी सन्तानके माफिक ही उसका प्रजा पर प्रेम था । इस प्रकार बड़े ही सुख-शान्ति से उसका समय बीतता था । ४२२ इस तरह कौण्डेशका बहुत समय बीत गया । एक दिन उसे कोई ऐसा कारण मिल गया कि जिससे उसे संसारमें बड़ा वैराग्य हो गया । वह संसारको अस्थिर, विषयभोगोंको रोगके समान, सम्पत्तिको बिजलीकी तरह चंचल—तत्काल देखते-देखते नष्ट होनेवाली, शरीरको मांस, मल, रुधिर आदि महा अपवित्र वस्तुओंसे भरा हुआ, दुःखोंका देनेवाला घिनौना और नाश होनेवाला जानकर सबसे उदासीन हो गया । इस जैनधर्मके रहस्यको जाननेवाले कौण्डेशके हृदय में वैराग्य भावनाकी लहरें लहराने लगीं । उसे अब घरमें रहना कैद खानेके समान जान पड़ने लगा | वह राज्याधिकार पुत्रको सौंप कर जिनमन्दिर गया । वहाँ उसने जिन भगवान की पूजा की, जो सब सुखोंकी कारण है । इसके बाद निर्ग्रन्थ गुरुको नमस्कार कर उनके पास वह दीक्षित हो गया । पूर्व जन्म में कौण्डेशने जो दान किया था, उसके फलसे वह थोड़े ही समय में श्रुतकेवली हो गया । यह श्रुतकेवली होना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है । क्योंकि ज्ञानदान तो केवलज्ञानका भी कारण है । जिस प्रकार ज्ञान-दानसे एक ग्वाल श्रुतज्ञानी हुआ उसी तरह अन्य भव्य पुरुषों को भी ज्ञान-दान देकर अपना आत्महित करना चाहिये । जो भव्यजन संसारके हित करनेवाले इस ज्ञान दानकी भक्तिपूर्वक पूजा-प्रभावना, पठन-पाठन लिखने- लिखाने, दान-मान, स्तवन - जपन आदि सम्यक्त्वके कारणोंसे आराधना किया करते हैं वे धन, जन, यश, ऐश्वर्य, उत्तम कुल, गोत्र, दीर्घायु आदिका मनचाहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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