Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 426
________________ औषधिदानकी कथा ४११ तब रूपवती थोड़े से उस पानीको लेकर अपनी माँके पास आई । इसकी माँ की आँखें कोई बारह वर्षोंसे खराब हो रही थीं। इससे वह बड़ी दुःख में थी। आँखोंको रूपवतीने इस जलसे धोकर साफ किया और देखा तो उनका रोग बिलकुल जाता रहा। वे पहलेसो बड़ी सुन्दर हो गईं । रूपवतीको वृषभसेना के महा पुण्यवती होनेमें अब कोई सन्देह न रह गया। इस रोग नाश करनेवाले जलके प्रभावसे रूपवतीको चारों ओर बड़ी प्रसिद्धि हो गई । बड़ी-बड़ी दूरके रोगी अपने रोगका इलाज करानेको आने लगे । क्या आँखोंके रोगको, क्या पेटके रोगको, क्या सिर सम्बन्धी पीड़ाओंको और क्या कोढ़ वगैरह रोगोंको, यही नहीं किन्तु जहर सम्बन्धी असाध्यसे असाध्य रोगोंको भी रूपवती केवल एक इसी पानोसे आराम करने लगी । रूपवतीको इससे बड़ो प्रसिद्ध हो गई । I उग्रसेन और मेघपिंगल राजाकी पुरानी शत्रुता चली आ रही थी । इस समय उग्रसेनने अपने मन्त्री रणपिंगलको मेघपिंगल पर चढ़ाई करनेकी आज्ञा दी । रणपिंगल सेना लेकर मेघपिंगल पर जा चढ़ा और उसके सारे देशको उसने घेर लिया । मेघपिंगलने शत्रुको युद्ध में पराजित करना कठिन समझ दूसरी ही युक्ति से उसे देशसे निकाल बाहर करना विचारा और इसके लिये उसने यह योजना की कि शत्रुकी सेनामें जिन-जिन कुँए, बावड़ीसे पीनेको जल आता था उन सबमें अपने चतुर जासूसों द्वारा विष घुलवा दिया । फल यह हुआ कि रणपिंगलकी बहुतसो सेना तो मर गई. और बची हुई सेनाको साथ लिये वह स्वयं भी भाग कर अपने देश लौट आया । उसकी सेना पर तथा उस पर जो विषका असर हुआ था, उसे रूपवतीने उसी जलसे आराम किया । गुरुओंके वचनामृत से जैसी जीवोंको शान्ति मिलती है रणपिंगलको उसी प्रकार शान्ति रूपवतीके जलसे मिली और वह रोगमुक्त हुआ । पिंगलका हाल सुनकर उग्रसेनको मेघपिंगल पर बड़ा क्रोध आया तब स्वयं उन्होंने उस पर चढ़ाई को । उग्रसेनने अबकी बार अपने जानते सावधानी रखने में कोई कसर न की । पर भाग्यका लेख किसी तरह नहीं मिटता । मेघपिंगलका चक्र उग्रसेन पर भी चल गया। जहर मिले जलको पीकर उनकी भी तबियत बहुत बिगड़ गई । तब जितनी जल्दी उनसे बन सका अपनी राजधानी में उन्हें लौट आना पड़ा । उनका भी बड़ा ही अन मान हुआ । रणपिंगलसे उन्होंने वह कैसे आराम हुआ था, इस बाबत पूछा । रण पिंगलने रूपवतीका जल बतलाया । उग्रसेन तब उसी समय 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472