Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 413
________________ ३९८ आराधना कथाकोश तुम्हें अभी और ठहरना पड़ेगा। तुम्हें एक महाभाग और कुलभूषण पुत्ररत्नकी प्राप्ति होगी। वह बड़ा तेजस्वी होगा। उसके द्वारा अनेक प्राणियोंका उद्धार होगा और वह इसी भवसे मोक्ष जाएगा। अवधिज्ञानी मुनिको यह भविष्यवाणी सुनकर दोनों को अपार हर्ष हुआ। सच है, गुरुओंके वचनामृत का पान कर किसे हर्ष नहीं होता। ____ अबसे ये सेठ-सेठानी अपना समय जिनपूजा, अभिषेक, पात्रदान आदि पुण्य कर्मों में अधिक देने लगे। कारण इनका यह पूर्ण विश्वास था कि सुखका कारण धर्म ही है। इस प्रकार आनन्द उत्सवके साथ कुछ दिन बीतने पर धनमित्राने एक प्रतापी पुत्र प्रसव किया। मुनिको भविष्यवाणी सच हुई । पुत्र जन्मके उपलक्षमें सेठने बहुत उत्सव किया, दान दिया, पूजा प्रभावना की। बन्धु-बांधवोंको बड़ा आनन्द हुआ। इस नवजात शिशुको देखकर सबको अत्यन्त प्रीति हुई। इसलिये इसका नाम भी प्रीतिकर रख दिया गया। दूजके चाँदकी तरह यह दिनों-दिन बढ़ने लगा। सुन्दरतामें यह कामदेवसे कहीं बढ़कर था, बड़ा भाग्यवान् था और इसके बलके सम्बन्धमें तो कहना हो क्या, जब कि यह चरम शरीरका धारोइसी भवसे मोक्ष जानेवाला है। जब प्रीतिकर पाँच वर्षका हो गया तब इसके पिताने इसे पढ़ानेके लिये गुरुको सोंप दिया। इसको बुद्धि बड़ो तीक्ष्ण थी और फिर इस पर गुरुकी कृपा हो गई। इससे यह थोड़े ही वर्षों में पढ़ लिखकर योग्य विद्वान् बन गया। कई शास्त्रोंमें इसकी अबाधगति हो गई। गुरु सेवा रूपी नाव द्वारा इसने शास्त्ररूपी समुद्रका प्रायः अधिकांश पार कर लिया। विद्वान् और धनी होकर भी इसे अभिमान छु तक न गया था। यह सदा लोगोंको धर्मका उपदेश दिया करता और पढ़ाता-लिखाता था। इसमें आलस्य, ईष्र्या, मत्सरता आदि दुर्गुणोंका नाम निशान भी न था । यह सबसे प्रेम करता था। सबके दुःख सुखमें सहानुभूति रखता। यही कारण था कि इसे सब ही छोटे-बड़े हृदयसे चाहते थे। जयसेन इसको ऐसी सज्जनता और परोपकार बुद्धि देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने स्वयं इसका वस्त्राभूषणोंसे आदर सत्कार कियाइसकी इज्जत बढ़ाई। ___ यद्यपि प्रीतिकरको धन दौलतकी कोई कमी नहीं थी परन्तु तब भी एक दिन बैठे-बैठे इसके मन में आया कि अपनेको भी कमाई करनी चाहिये। कर्तव्यशीलोंका यह काम नहीं कि बैठे-बैठे अपने बाप-दादोंकी सम्पत्ति पर मजा-मौज उड़ाकर आलसी और कर्तव्यहीन बनें। और न सपूतोंका यह काम ही है । इसलिये मुझे धन कमानेके लिये प्रयत्न करना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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