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आराधना कथाकोश
जिनशासनका उपदेश दिया । उसका श्रेणिकके हृदय पर बहुत असर पड़ा । उनके परिणामों में विलक्षण परिवर्तन हो गया । उन्हें अपने कृत कर्म पर अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ । मुनिराजके उपदेशानुसार उन्होंने सम्यक्त्व ग्रहण किया। उसके प्रभावसे, उन्होंने जो सातवें नर्कको आयुका बन्ध किया था, वह उसी समय घटकर पहले नरकका रह गया । यहाँकी स्थिति चौरासी हजार वर्षों की है । ठीक है सम्यग्दर्शनके प्रभावसे भव्यपुरुषोंको क्या प्राप्त नहीं होता ।
इसके बाद श्रेणिक श्रीचित्रगुप्त मुनिराज के पास क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त किया । और अन्तमें भगवान् वर्धमान स्वामीके द्वारा शुद्ध क्षायिक सम्यक्त्व, जो कि मोक्षका कारण है, प्राप्त कर पूज्य तीर्थंकर नाम प्रकृतिका बन्ध किया । श्रेणिक महाराज अब तीर्थंकर होकर निर्वाण लाभ करेंगे ।
इसलिए भव्यजनों को इस स्वर्ग- मोक्षके सुख देनेवाले तथा संसारका हित करनेवाले सम्यग्दर्शन रूप रत्न द्वारा अपनेको भूषित करना चाहिए । यह सम्यग्दर्शन रूप रत्न इन्द्र, चक्रवर्ती आदिके सुखका देनेवाला, दुःखोंका नाश करनेवाला और मोक्षका प्राप्त करानेवाला है । विद्वज्जन आत्म हित के लिए इसीको धारण करते हैं । उस सम्यग्दर्शनका स्वरूप श्रुतसागर आदि मुनिराजोंने कहा है। जिनभभवान् के कहे हुए तत्त्वोंका श्रद्धान करना ऐसा विश्वास करना कि भगवान्ने जैसा कहा वही सत्यार्थ है । तब आप लोग भी इस सम्यग्दर्शनको ग्रहण कर आत्म-हित करें, भावना है ।
यह मेरी
१०८. रात्रिभोजन त्याग - कथा
जिन भगवान्, जिनवाणी और गुरुओंको नमस्कार कर रात्रि भोजनका त्याग करनेसे जिसने फल प्राप्त किया उसकी कथा लिखी जाती है ।
जो लोग धर्मरक्षा के लिए रात्रिभोजनका त्याग करते हैं, वे दोनों
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