Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 398
________________ सम्यग्दर्शनके प्रभावकी कथा ३८३ यदि कर्ज लेकर उन्होंने इसे तैयार किया तब तो समझना चाहिए कि यह खेत पहले ही खा लिया गया और यदि कर्ज नहीं लिया गया तो अब वे इसे खायगे - अपने उपयोग में लायेंगे । इस प्रकार श्रेणिक के सब प्रश्नोंका उत्तर अभयमतीने अपने पिताको समझाया । सुनकर सोमशर्माको वड़ा ही आनन्द हुआ । सोमशर्माने तब अभयमतीसे कहा - तो बेटा, ऐसे गुणवान् और रूपवान् लड़केको तो अपने घर लाना चाहिए। और अभयमती, वह जब पहले हो मिला तब उसने मुझे मामाजी कह कर पुकारा था । इसलिए उसका कोई अपने साथ सम्बन्ध भी होगा । अच्छा तो मैं उसे बुलाये लाता 1 अभयमती बोली -- पिताजी, आपको तकलीफ उठानेकी कोई आवश्यकता नहीं । मैं अपनी दासीको भेजकर उसे अभी बुलवा लेती हूँ । मुझे अभी एक दो बातों द्वारा और उसको जाँच करना है। इसके लिए मैं निपुणमतीको भेजती हूँ। अभयमतीने इसके बाद निपुणमतीको कुछ थोड़ासा उबटन चूर्ण देकर भेजा और कहा तू उस नये आगन्तुकसे कहना कि मेरी मालिकनने आपकी मालिशके लिए यह तेल और उबटन चूर्ण भेजा है, सो आप अच्छी तरह मालिश तथा स्नान करके फलाँ रास्ते से घर पर आवें । निपुणमतीने श्रेणिकके पास पहुँच कर सब हाल कहा और तेल तथा उबटन रखनेको उससे बरतन माँगा । श्रेणिक उस थोड़ेसे तेल और उबटनको देखकर, जिससे कि एक हाथका भी मालिश होना असंभव था, दंग रह गया । उसने तब जान लिया कि सोमशर्मासे मैंने जो-जो प्रश्न किये थे उसने अपनी लड़कीसे अवश्य कहा है और इसीसे उसकी लड़कीने मेरी परीक्षाके लिए यह उपाय रचा है । अस्तु कुछ परवा नहीं । यह विचार कर उस उपजत-बुद्धि श्रेणिकने तेल और उबटन चूर्णके रखने को अपने पाँवके अँगूठेसे दो गढ़े बनाकर निपुणमतो से कहा- आप तेल और चूर्ण के लिए बरतन चाहती हैं। अच्छी बात हैं, ये ( गढ़े की ओर इशारा करके ) बरतन है । आप इनमें तैल और चूण रख दीजिए। मैं थोड़ी ही देर बाद स्नान करके आपकी मालिकनकी आज्ञाका पालन करूँगा । निपुणमती श्रेणिककी इस बुद्धिमानीको देखकर दंग रह गई । वह फिर श्रेणिक कहे अनुसार तेल और चूर्णको रखकर चली गई । अभयमतीने श्रेणिकको जिस रास्तेसे बुलाया था, उसमें उसने कोई 'घुटने-घुटने तक कीचड़ करवा दिया था । और कोचड़ बाहर होने के -स्थान पर बाँसको एक छोटी सी पतलो छोई (कमचो) और बहुत ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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