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सम्यग्दर्शनके प्रभावको कथा पूरी हुई तब यह कांचीपुरमें हमारे इस कथानायक श्रेणिकके अभयकुमार नामका पूत्र हुआ। अभयकुमार बड़ा वीर और गुणवान् था और सच भी है जो कर्मोका नाशकर मोक्ष जाने वाला है, उसको वीरताका क्या पूछना ? ___कांचीके राजा वसुपाल एक बार दिग्विजय करनेको निकले। एक जगह उन्होंने एक बड़ा ही सुन्दर और भव्य जिनमन्दिर देखा। उसमें विशेषता यह थी कि वह एक ही खम्भेके ऊपर बनाया गया था-उसका आधार एक ही खम्भा था। वसुपाल उसे देखकर बहुत खुश हुए। उनकी इच्छा हुई कि ऐसा मन्दिर कांचीमें भी बनवाया जाय । उन्होंने उसी समय अपने पुरोहित सोमशर्माको एक पत्र लिखा। उसमें लिखा कि-"अपने यहाँ एक ऐसा सुन्दर जिन मंदिर तैयार करवाना, जिसकी इमारत भव्य और बड़ी मनोहर हो। सिवा इसके उसमें यह विशेषता भी हो कि मंदिर की सारी इमारत एक ही खम्भे पर खड़ी की जाए। मैं जब तक आऊँ तब तक मंदिर तैयार हो जाना चाहिए।" सोमशर्मा पत्र पढ़कर बड़ी चिन्ता में पड़ गया । वह इस विषयमें कुछ जानता न था, इसलिए वह क्या करे ? कैसा मंदिर बनवावे ? इसकी उसे कुछ सूझ न पड़ती थी। चिन्ता उसके मुंह पर सदा छाई रहती थी। उसे इस प्रकार उदास देखकर श्रेणिकने उससे उसकी उदासीका कारण पूछा। सोमशर्माने तब वह पत्र श्रेणिकके हाथमें देकर कहा-यही पत्र मेरी चिन्ताका मुख्य कारण है। मुझे इस विषयका किंचित् भी ज्ञान नहीं तब मैं मन्दिर बनवाऊँ भी तो कैसा ? इसीसे मैं चिन्तामग्न रहता हूँ ! श्रेणिकने तब सोमशर्मासे कहा-आप इस विषयकी चिन्ता छोड़कर इसका सारा भार मझे दे दीजिए। फिर देखिए, मैं थोड़े ही समयमें महाराजके लिखे अनुसार मंदिर बनवाए देता है। सोमशर्माको श्रेणिकके इस साहस पर आश्चर्य तो अवश्य हुआ, पर उसे श्रेणिककी बुद्धिमानीका परिचय पहलेहोसे मिल चुका था; इसलिए उसने कुछ सोच-विचार न कर सब काम श्रेणिकके हाथ सौंप दिया । श्रेणिकने पहले मन्दिरका एक नक्शा तैयार किया । जब नक्शा उसके मनके माफिक बन गया तब उसने हजारों अच्छेअच्छे कारीगरोंको लगाकर थोड़े ही समयमें मन्दिरको विशाल और भव्य इमारत तैयार करवा ली। श्रेणिककी इस बुद्धिमानोको जो देखता वही उसकी शतमुखसे तारीफ करता। और वास्तवमें श्रेणिकने यह कार्य प्रशंसाके लायक किया भी था । सच है, उत्तम ज्ञान, कला-चतुराई ये सब बातें बिना पुण्यके प्राप्त नहीं होती।
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