Book Title: Aradhana Katha kosha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 401
________________ ३८६ आराधना कथाकोश जब वसुपाल लौटकर कांची आये और उन्होंने मन्दिरकी उस भव्य इमारतको देखा तो वे बड़े खुश हए । श्रेणिक पर उनकी अत्यन्त प्रीति हो गई। उन्होंने तब अपनी कुमारी वसुमित्राका उसके साथ ब्याह भी कर दिया । श्रेणिक राजजमाई बनकर सुखके साथ रहने लगा। अब राजगृहकी कथा लिखी जाती है उपश्रेणिकने श्रेणिकको, उसकी रक्षा हो इसके लिए, देश बाहर कर दिया। इसके बाद कुछ दिनों तक उन्होंने और राज्य किया। फिर कोई कारण मिल जानेसे उन्हें संसार-विषय-भोगादिसे बड़ा वैराग्य हो गया। इसलिए वे अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार, चिलातपुत्रको सब राज्यभार सौंपकर दीक्षा ले, योगी हो गये । राज्यसिंहासनको अब चिलातपुत्रने अलंकृत किया। प्रायः यह देखा जाता है कि एक छोटी जातिके या विषयोंके कीड़े, स्वार्थी, अभिमानी, मनुष्यको कोई बड़ा अधिकार या खूब मनमानी दौलत मिल जाती है तो फिर उसका सिर आसमानमें चढ़ जाता है, आँखें उसकी अभिमानके मारे नीची देखती ही नहीं। ऐसा मनुष्य संसारमें फिर सब कुछ अपनेको ही समझने लगता है। दूसरोंकी इज्जत-आबरूकी वह कुछ परवा न कर उनका कौड़ीके भाव भी मोल नहीं समझता। चिलातपुत्र भी ऐसे ही मनुष्योंमें था। बिना परिश्रम या बिना हाथ-पाँव हिलाये उसे एक विशाल राज्य मिल गया और मजा यह कि अच्छे शूरवीर और गुणवान् भाइयोंके बैठे रहते ! तब उसे क्यों न राजलक्ष्मीका अभिमान हो ? क्यों न वह गरीब प्रजाको पैरों नीचे कुचल कर इस अभिमानका उपयोग करे ? उसकी माँ भीलकी लड़की, जिसका कि काम दिन-रात लूट-खसोट करने और लोगोंको मारने-काटनेका रहा, उसके विचार गन्दे, उसकी वासनाएँ नीचातिनीच; तब वह अपनी जाति, अपने विचार और अपनी वासनाके अनुसार यदि काम करे तो इसमें नई बात क्या ? कुछ लोग ऐसा कहें कि यह सब कुछ होने पर भी अब वह राजा है, प्रजाका प्रतिपालक है, तब उसे तो अच्छा होना ही चाहिए। इसका यह उत्तर है कि ऐसा होना आवश्यक है और एक ऐसे मनुष्यको, जिसका कि अधिकार बहुत बड़ा है-हजारों लाखों अच्छे-अच्छे इज्जत-आबरूदार, धनी, गरीब, दीन, दुःखी जिसकी कृपाकी चाह करते हैं, विशेष कर शिष्ट और सबका हितैषी होना ही चाहिए । हाँ ये सब बातें उसमें हो सकती हैं, जिसमें दयालुता, परोपकारता, कुलीनता, निरभिमानता, सरलता, सज्जनता आदि गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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