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विनयी पुरुषको कथा
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को बड़ी देर लगी ? मैं बड़ी देरसे आपका रास्ता देख रहा हूँ । उत्तर में सुप्रतिष्ठने मायाचारीसे झूठ-मूठ ही कह दिया कि राजन्, आज मेरी तपस्या के प्रभाव से ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि सब देव आये थे । वे बड़ी भक्ति से मेरी पूजा करके अभी गये हैं। यही कारण मुझे देरी लग जानेका है । और राजन्, एक बात नई यह हुई कि मैं अब आकाशमें ही चलनेफिरने लग गया । सुनकर राजाको बड़ा आश्चर्य हुआ और साथ ही में यह सब कौतुक देखने को उसकी मंशा हुई। उसने तब सुप्रतिष्ठसे कहाअच्छा तो महाराज, अब आप आइए और भोजन कीजिए। क्योंकि बहुत देर हो चुकी है । आप वह सब कौतुक मुझे बतलाइएगा । सुप्रतिष्ठ 'अच्छी बात है' कहकर भोजनके लिए चला आया ।
दूसरे दिन सबेरा होते ही राजा और उसके अमीर-उमराव वगैरह सभी प्रतिष्ठ साधुके मठमें उपस्थित हुए । दर्शकों का भी ठाठ लग गया । सबकी आँखें और मन साधुकी ओर जा लगे कि वह अपना नया चमत्कार बतलावें । सुप्रतिष्ठ साधु भी अपनी करामात बतलानेको आरंभ करनेवाला ही था कि इतनेमें वह विद्युत्प्रभ विद्याधर और उसकी स्त्री उसी चाण्डाल वेष में वहीं आ धमके। सुप्रतिष्ठके देवता उन्हें देखते ही कूंच कर गये । ऐसे समय उनके आजानेसे इसे उन पर बड़ी घृणा हुई। उसने मन ही मन घृणाके साथ कहा- ये दुष्ट इस समय क्यों चले आये ! उसका यह कहना था कि उसकी विद्या नष्ट हो गई । वह राजा वगैरहको अब कुछ भी चमत्कार न बतला सका और बड़ा शर्मिन्दा हुआ । तब राजाने 'ऐसा एक साथ क्यों हुआ' इसका सब कारण सुप्रतिष्ठसे पूछा । झख मारकर फिर उसे सब बातें राजासे कह देनी पड़ीं। सुनकर राजाने उन चाण्डालों को बड़ी भक्ति से प्रणाम किया। राजा की यह भक्ति देखकर उन्होंने वह विद्या राजाको दे दो । राजा उसकी परीक्षा कर बड़ी प्रसन्नता से अपने महल लौट गया । सो ठीक ही है विद्याका लाभ सभीको सुख देनेवाला होता है ।
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राजाकी भी परीक्षाका समय आया । विद्याप्राप्ति के कुछ दिनों बाद एक दिन राजा राज- दरबारमें सिंहासन पर बैठा हुआ था । राजसभा सब अमीर-उमरावोंसे ठसाठस भरी हुई थी। इसी समय राजगुरु चाण्डाल वहाँ आया, जिसने कि राजाको विद्या दी थी। राजा उसे देखते ही बड़ी भक्ति से सिंहासन परसे उठा और उसके सत्कारके लिए कुछ आगे बढ़कर उसने उसे नमस्कार किया और कहा - प्रभो, आप हीके चरणोंकी कृपासे मैं जीता है । राजाकी ऐसी भक्ति और विनयशीलता देखकर विद्युत्प्रभ
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