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आराधना कथाकोश निकला। रास्तेमें एक जगह इसने वसुदेवको कुछ लोगोंके साथ कड़ेके सम्बन्धकी ही बात-चीत करते पाया। कोतवाल तब उसे पकड़ कर राजा के पास लिवा ले गया । चक्रवर्ती उसे देखकर बोले-मैं तुझ पर बहुत खुश हूँ। तुझे जो चाहिए वहो माँग ले। वसुदेव बोला-महाराज, इस विषय में मैं कुछ नहीं जानता कि मैं आपसे क्या माँगें। यदि आप आज्ञा करें तो मैं मेरी माँको पूछ आऊँ । चक्रवर्ती के कहनेसे वह अपनो माँके पास गया और उसे पूछ आकर चक्रवर्ती से उसने प्रार्थना को-महाराज, आप मुझे चोल्लक भोजन कराइए। उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। तब चक्रवर्तीने उनसे पूछा-भाई, चोल्लक भोजन किसे कहते हैं ? हमने तो उसका नाम भी आज तक नहीं सुना । वसुदेवने कहा-सुनिए महाराज, पहले तो बड़े आदरके साथ आपके महलमें मुझे भोजन कराया जाय और खूब अच्छे-अच्छे सुन्दर कपड़े, गहने-दागीने दिये जाय। इसके बाद इसी तरह आपकी रानियोंके महलोंमें क्रम-क्रमसे मेरा भोजन हो। फिर आपके परिवार तथा मण्डलेश्वर राजाओंके यहाँ मुझे इसी प्रकार भोजन कराया जाय । इतना सब हो चुकनेपर क्रम-क्रमसे फिर आपही के यहाँ मेरा अन्तिम भोजन हो । महाराज, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी आज्ञासे मुझे यह सब प्राप्त हो सकेगा।
भव्यजनो, इस उदाहरणसे यह शिक्षा लेनेकी है कि यह चोल्लक भोजन वसुदेव सरीखे कंगालको शायद प्राप्त हो भी जाय तो भो इसमें आश्चर्य करनेकी कोई बात नहीं, पर एक बार प्रमादसे खो-दिया गया मनुष्य जन्म बेशक अत्यन्त दुर्लभ है । फिर लाख प्रयत्न करने पर भी वह सहसा नहीं मिल सकता । इसलिए बुद्धिवानोंको उचित है कि वे दुःखके कारण खोटे मार्गको छोड़कर जैनधर्मका शरण लें, जो कि मनुष्य जन्मकी प्राप्ति और मोक्षका प्रधान कारण है।
२. पाशेका दृष्टान्त मगध देशमें शतद्वार नामका एक अच्छा शहर था। उसके राजाका नाम भी शतद्वार था। शतद्वारने अपने शहर में एक ऐसा देखने योग्य दरवाजा बनवाया, कि जिसके कोई ग्यारह हजार खंभे थे। उन एक-एक खम्भोंमें छयानवे ऐसे स्थान बने हुए थे जिनमें जुआरी लोग पाशे द्वारा सदा जुआ खेला करते थे। एक शिवशर्मा नामके ब्राह्मणने उन जुआरियोंसे प्रार्थना की-भाइयों, मैं बहुत ही गरीब हूँ, इसलिए यदि आप मेरा इतना उपकार करें, कि आप सब खेलनेवालोंका दाव यदि किसी समय
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