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मनुष्य-जन्मको दुर्लभताके दस दृष्टान्त एक हीसा पड़ जाय और वह सब धन-माल आप मुझे दे दें, तो बहुत अच्छा हो । जुआरियोंने सोमशर्माको प्रार्थना स्वीकार कर लो। इसलिए कि उन्हें विश्वास था कि ऐसा होना नितान्त हो कठिन है, बल्कि असंभव है । पर दैवयोग ऐसा हुआ कि एक बार सबका दाव एक हीसा पड़ गया और उन्हें अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार सब धन सोमशर्माको दे देना पड़ा। वह उस धनको पाकर बहुत खुश हुआ। इस दृष्टान्तसे यह शिक्षा लेनी चाहिए। कि जैसा योग सोमशर्माको मिला था, वैसा योग मिलकर और कर्मयोगसे इतना धन भी प्राप्त हो जाय तो कोई बात नहीं, परन्तु जो मनुष्य-जन्म एक बार प्रमाद वश हो नष्ट कर दिया जाय तो वह फिर सहजमें नहीं मिल सकता। इसलिए सत्पुरुषोंको निरन्तर ऐसे पवित्र कार्य करते रहना चाहिए, जो मनुष्य-जन्म या स्वर्ग मोक्षके प्राप्त करानेवाले हैं। ऐसे कर्म हैं-जिनेन्द्र भगवान्की पूजा करना, दान देना, परोपकार करना, व्रतोंका पालना, ब्रह्मचर्यसें रहना और उपवास करना आदि ।
३. धान्य दृष्टान्त जम्बूद्वीपके बराबर चौड़ा और एक हजार योजन अर्थात् दो हजार कोस या चार कोसं ऊँचा एक बड़ा भारी गढ़ा खोदा जाकर वह सरसोंसे भर दिया जाय । उसमेंसे फिर रोज-रोज एक-एक सरसों निकाली जाया करे । ऐसा निरन्तर करते रहनेसे एक दिन ऐसा भी आयगा कि जिस दिन वह कुण्ड सरसोंसे खाली हो जायगा । पर यदि प्रमादसे यह जन्म नष्ट हो गया तो वह समय फिर आना एक तरह असम्भव सा ही हो जायगा, जिनमें कि मनुष्य-जन्म मिल सके । इसलिए बुद्धिमानोंको उचित है कि वे प्राप्त हुए मनुष्य जन्मको निष्फल न खोकर जिन-पूजा, व्रत, दान, परोपकारादि पवित्र कामोंमें लगावें। क्योंकि ये सब परम्परा मोक्षके साधन हैं।
धान्यका दूसरा दृष्टान्त ___ अयोध्याके राजा प्रजापाल पर राजगहके जितशत्रु राजाने एक बार चढ़ाई की और सारी अयोध्याको सब ओरसे घेर लिया। तब राजाने अपनी प्रजासे कहा-जिसके यहाँ धानके जितने बोरे हों, उन सब बोरोंको लाकर और गिनती करके मेरे कोठोंमें सुरक्षित रख दें। मेरी इच्छा है कि शत्रुको एक अन्नका दाना भी यहाँसे प्राप्त न हो। ऐसी हालतमें उसे झख मार कर लौट जाना पड़ेगा। सारी प्रजाने राजाकी आज्ञानुसार
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