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आराधना कथाकोश बनारसके राजा वृषभध्वज प्रजाका हित चाहनेवाले और बड़े बुद्धिमान् थे । इनकी रानीका नाम वसुमती था। वसुमतो बड़ो सुन्दरी थी। राजाका इस पर अत्यन्त प्रेम था।
गंगाके किनारे पर पलास नामका एक गाँव बसा हआ था। इसमें अशोक नामका एक गुवाल रहता था। यह गुवाल राजाको गांवके लगानमें कोई एक हजार घीके भरे घड़े दिया करता था। इसकी स्त्री नन्दा पर इसका प्रेम न था । इसलिये कि वह बांझ थी। और यह सच है, सुन्दर • या गुणवान स्त्री भी बिना पुत्रके शोभा नहीं पाती है और न उस पर पतिका पूरा प्रेम होता है । वह फल रहित लताकी तरह निष्फल समझी जाती है। अपनी पहली स्त्रीको निःसन्तान देखकर अशोक गुवालने एक और ब्याह कर लिया। इस नई स्त्रोका नाम सुनन्दा था। कुछ दिनों तक तो इन दोनों सौतोंमें लोक-लाजसे पटती रही, पर जब बहुत ही लड़ाईझगड़ा होने लगा तब अशोकने इनसे तंग आकर अपनी जितनी धनसम्पत्ति थी उसे दोनोंके लिये आधी-आधी बाँट दिया । नन्दाको अलग घरमें रहना पड़ा और सुनन्दा अशोकके पास ही रही। नन्दामें एक बात बड़ी अच्छी थी। वह एक तो समझदार थी। दूसरे वह अपने दूध दुहनेके लिये बरतन वगैरहको बड़ा साफ रखतो। उसे सफाई बड़ी पसन्द थी। इसके सिवा वह अपने नौकर गुवालों पर बड़ा प्रेम करती। उन्हें अपना नौकर न समझ अपने कुटुम्बकी तरह मानती। वह उनका बड़ा आदरसत्कार करती। उन्हें हर एक त्यौहारोंके मौकों पर दान-मानादिसे बड़ा खुश रखती। इसलिए वे गवाल लोग भी उसे बहत चाहते थे और उसके कामोंको अपना ही समझ कर किया करते थे। जब वर्ष पूरा होता तो नन्दा राज लगानके हजार घीके घड़ोंमेंसे अपना आधा हिस्सा पाँचसौ घड़े अपने स्वामीको प्रतिवर्ष दे दिया करती थी। पर सुनन्दामें ये सब बातें न थीं। उसे अपनी सुन्दरताका बड़ा अभिमान था। इसके सिवा यह बड़ी शौकीन थी। साज-सिंगारमें ही उसका सब समय चला जाता था । वह अपने हाथोंसे कोई काम करना पसन्द न करती थी। सब नौकर-चाकरों द्वारा ही होता था। इस पर भी उसका अपने नौकरोंके साथ अच्छा बरताव न था। सदा उनके साथ वह माथा-फोड़ी किया करती थी । किसीका अपमान करती, किसीको गालियाँ देती और किसीको भला-बुरा कहकर झिटकारती। न वह उन्हें कभी त्यौहारों पर कुछ दे-लेकर प्रसन्न करतो। गर्ज यह कि सब नौकर-चाकर उससे प्रसन्न न थे। जहाँ तक उनका बस चलता वे भी सुनन्दाको हानि पहुंचानेका यत्न करते थे। यहाँ तक कि वे
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