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निव - असल बातको छुपानेवाली की कथा
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जो गायोंको चराने जंगलमें ले जाते, सो वहाँ उनका दूध तक दुह कर पी लिया करते थे । इससे सुनन्दाके यहाँ पहले वर्ष में हो घी बहुत थोड़ा हुआ । वह राजलगानका अपना आधा हिस्सा भी न दे सकी। उसके इस आधे हिस्से को भी बेचारी नन्दाने ही चुकाया । सुनन्दाकी यह दशा देखकर अशोकने घरसे निकाल बाहर की । नन्दाको अपना गया अधिकार पीछा प्राप्त हुआ । पुण्यसे वह पीछा अशोककी प्रेमपात्र हुई । घर बार, धन-दौलतकी वह मालकिन हुई । जिस प्रकार नन्दा अपने घरगृहस्थी के कामको अच्छी तरह चलानेके लिये सदा दान- मानादि किया करती उसो प्रकार अपने पारमार्थिक कामोंके लिये भव्यजनोंको भी अभिमान रहित होकर जैनधर्मकी उन्नति के कार्यों में दान-मानादि करते रहना चाहिए । उससे वे सुखी होंगे और सम्यग्ज्ञान लाभ करेंगे ।
जो स्वर्ग- मोक्षका सुख देनेवाले जिन भगवान् की बड़ी भक्तिसे पूजाप्रभावना करते हैं, भगवान् के उपदेश किये शास्त्रोंके अनुसार चल उनका सत्कार करते हैं, पवित्र जैनधर्म पर श्रद्धा - विश्वास करते हैं और सज्जन धर्मात्माओं का आदर सत्कार करते हैं वे संसार में सर्वोच्च यश लाभ करते हैं और अन्तमें कर्मोंका नाश कर परम पवित्र केवलज्ञान -- कभी नाश न होनेवाला सुख प्राप्त करते हैं ।
६२. निह्नव - असल बातको छुपानेवालेकी कथा
जिनके सर्वश्रेष्ठ ज्ञानमें यह सारा संसार परमाणुके समान देख पड़ता है, उन सर्वज्ञ भगवान्को नमस्कार कर निह्नव - जिस प्रकार जो बात हो उसे उसी प्रकार न कहना, उसे छुपाना, इस सम्बन्धको कथा लिखी जाती है ।
उज्जैन के राजा धृतिषेणकी रानी मलयावती के चण्डप्रद्योत नामका एक पुत्र था । वह जैसा सुन्दर था वैसा ही गुणवान भी था । पुण्यके उदयसे उसे सभी सुख सामग्री प्राप्त थी ।
एक बार दक्षिण देशके वेनातट नगर में रहनेवाले सोमशर्मा ब्राह्मणका
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