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सुदृष्टि सुनारकी कथा
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यहाँ एक सुदृष्टि नामका सुनार रहता था । जवाहिरातके काम में यह बड़ा चतुर था तथा सदाचारी और सरल स्वभावो था । इसकी स्त्रीका नाम विपला था। विमला दुराचारिणी थी । अपने घर में रहनेवाले एक वक्र नामके विद्यार्थीसे, जिसे कि सुदृष्टि अपने खर्चसे लिखाता- पढ़ाता था, विमलाका अनुचित सम्बन्ध था । विमला अपने स्वामीसे बहुत ना-खुश थी । इसलिए उसने अपने प्रेमी वक्रको उस्का कर, उसे कुछ भली-बुरी सुझाकर सुदृष्टिका खून करवा दिया। खून उस समय किया गया जब कि सुदृष्टि विषय सेवन में मग्न था । सो यह मरकर विमलाके ही गर्भ में आया । विमलाने कुछ दिनों बाद पुत्र प्रसव किया । आचार्य कहते हैं कि संसारकी स्थिति बड़ी ही विचित्र है जो पल भर में कर्मों की पराधीनतासे जीवोंका अजब परिवर्तन हो जाता है । वे नटकी तरह क्षणक्षण में रूप बदला ही करते हैं ।
चैतका महीना था वसन्तकी शोभाने सब ओर अपना साम्राज्य स्थापित कर रक्खा था । वन उपवनोंकी शोभा मनको मोह लेती थी । इसी सुन्दर समय में एक दिन महारानी सुप्रभा अपने खास बगीचे में प्राणनाथ के साथ हँसी विनोद कर रही थी। इसी हँसी - विनोद में उसका क्रीड़ा - विलास नामका सुन्दर बहुमूल्य हार टूट पड़ा । उसके सब रत्न बिखर गये । राजाने उसे फिर वैसा ही बनवानेका बहुत यत्न किया, जगह-जगहसे अच्छे सुनार बुलवाये पर हार पहले सा किसीसे नहीं बना । सच है, बिना पुण्यके कोई उत्तम कला या ज्ञान नहीं होता । इसी टूटे हुए हारको विमलाके लड़केने अर्थात् पूर्वभवके उसके पति सुदृष्टिने देखा । देखते ही उसे जाति स्मरण - पूर्व जन्मका ज्ञान हो गया । उससे उसने उस हारको दिया । इसका कारण यह था कि इस हारको पहले भी था और यह बात सच है कि इस जीवको पूर्व जन्मके कला कौशल, ज्ञान-विज्ञान दान-पूजा आदि सभी बातें प्राप्त हुआ करती हैं । प्रजापाल उसकी यह हुशियार देखकर बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने उससे पूछा भी कि भाई, यह हार जैसा सुदृष्टिका बनाया था वैसा हो तुमने कैसे बना दिया ? तब वह विमलाका लड़का मुँह नीचा कर बोलाराजाधिराज, मैं अपनो कथा आपसे क्या कहूँ । आप यह समझें कि वास्तव
पहले सा ही बना सुदृष्टि होने बनाया
संसार पुण्यसे ही
मैं ही दृष्टि हूँ । इसके बाद उसने बोती हुई सब घटना राजा से कह सुनाई । वे संसार की इस विचित्रताको सुनकर विषय-भोगोंसे बड़े विरक्त हुए । उन्होंने उसी समय सब माया जाल छोड़कर आत्महितका पथ जिनदीक्षा ग्रहण कर ली ।
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