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वृषभसेनको कथा
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एक दिन धर्मसिंह तपस्वी दमधर मुनिके दर्शनार्थ गये । उनकी भक्ति से पूजा-स्तुति कर उन्होंने उनसे धर्मका पवित्र उपदेश सुना, जो धर्म देवों द्वारा भी बड़ी भक्ति के साथ पूजा माना जाता है । धर्मोपदेशका धर्मसिंह चित्त पर बड़ा गहरा असर पड़ा । उससे वे संसार और विषय - भोगों से विरक्त हो गये । उनकी रानी चन्दश्रीको उन्हें जवानीमें दीक्षा ले जानेसे बड़ा कष्ट हुआ । पर बेचारी लाचार थी । उसके दुःखकी बात जब उसके भाई चन्द्रभूतिको मालूम हुई तो उसे भी अत्यन्त दुःख हुआ । उससे अपनी बहिन की यह हालत न देखी गई। उसने तब जबरदस्ती अपने बहनोई धर्मसिंहको उठा लाकर चन्द्रश्रीके पास ला रक्खा | धर्मसिंह फिर भी न ठहरे और जाकर उन्होंने पुनः दीक्षा ले लो और महा तप तपने लगे ।
एक दिन इसी तरह वे तपस्या कर रहे थे । तब उन्होंने चन्द्रभूतिको अपनी ओर आता हुआ देखा। उन्होंने समझ लिया कि यह फिर मेरी तपस्या बिगाड़ेगा । सो तपको रक्षाके लिये पास हो पड़े हुए मृत हाथी के शरीरमें घुसकर उन्होंने समाधि ले ली और अन्त में शरीर छोड़कर वे स्वर्ग में गये । इसलिये भव्यजनोंको कष्टके समय भी अपने व्रतकी रक्षा करनी ही चाहिये कि जिससे स्वर्ग या मोक्षका सर्वोच्च सुख प्राप्त होता है ।
निर्मल जैनधर्मके प्रेमी जिन श्रीधर्मसिंह मुनिने जिन भगवान् के उपदेश किये और स्वर्ग- मोक्षके देनेवाले तप मार्गका आश्रय ले उसके पुण्यसे स्वर्ग-सुख लाभ किया वे संसार प्रसिद्ध महात्मा और अपने गुणोंसे सबकी बुद्धि पर प्रकाश डालनेवाले मुझे भी मंगल-सुख दान करें ।
८०. वृषभसेनकी कथा
स्वर्ग और मोक्षका सुख देनेवाले तथा सारे संसारके द्वारा पूजे-माने जानेवाले श्री जिन भगवान्को नमस्कार कर वृषभसेनकी कथा लिखी जाती है ।
पाटलिपुत्र (पटना) में वृषभदत्त नामका एक सेठ रहता था । पूर्व २१
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